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मेरी विचारधारा पुष्ट हुई है। हमें उच्च स्तर पर रहने वालों को बाहरी सुनी-सुनायी बातों में आकर, शंकित होकर जल्दबाजी में कार्य-प्रवृत्त नहीं होना चाहिए. यही पाठ अब हमें मिला। अभी मुद्दला को बुलवाने की जरूरत नहीं। अब ये क्या कहते हैं सो सुनकर निर्णय लिया जा सकता है।'' शान्तलदेवी ने कहा।
"मुद्दला ने सत्य कहा हो तो?" अचानक विनयादित्य पूछ बैठा।
"वह परिवार से सम्बन्धित विषय है। सबको यह जानना आवश्यक नहीं।" शान्तलदेवी ने कुछ कड़ाई से कहा।
गंगराज ने पूछा, "सिंगिराज या गोज्जिगा, कोई भी सही, सत्य नहीं कहेंगे तो उन्हें कठोर दण्ड-विधान से दण्डित करके उनके मुँह से सत्य कहलवाना पड़ेगा। बीरगा की तरह टेढ़े-तिरछे मार्ग अवलम्बन कर इसे जानने की जरूरत इस न्यायपीठ को नहीं है। जहाँ तक में जानकारी है हमने मना है मोलराज अपने पिता की तरह धर्मान्ध नहीं हैं। इस काम में उनका हाथ है, यह विश्वास नहीं किया जा सकता। इसके लिए पर्याप्त आधार नहीं। क्या बोलते हो?"
गोन्जिगा आगे बढ़ा, "द्वेष फैलाने के लिए कहा और धन दिया, यह सत्य है। हमें यह धन देनेवाले हमारे चोल प्रभु नहीं। जयकेशी के चरों ने जितना माँगा उतना धन हमें दिया, और कहा–'यह काम करो। हमें पोय्सल राज्य से कोई प्रेम नहीं। ये तमाशबीन यदि हमारे साथ नहीं होते तो हम आप लोगों के हाथ में न पड़ते । अगस्त्येश्वर अग्रहार में हमारा पता लगानेवाला मावण था, यह हम नहीं समझ पाये । वह वेश बदले हुए था। परन्तु मैं दूर रहा, इसलिए मैं सिंगिराज को छुड़ा न सका। वीरगा ने जो कहा उसमें बहुतांश सत्य है । हमें कठोर दण्ड देने के बदले चाहे सूली पर चढ़ा दें, इनकार नहीं। आपके राज्य में श्रीवैष्णव और जैन का अन्तर्युद्ध निश्चित रूप से होनेवाला है । बहुत तीव्रगति से क्रियात्मक रूप धारण कर रहा है। आपके गुरुजी हमारे राज्य से भाग आये, अपनी गलती से नहीं, बल्कि अपने शिष्यों के बरताव के कारण । उन्हें आपने आश्रय दिया। यहाँ भी वही होगा। उनके शिष्य ही आपके लिए कण्टक हैं।'' इतना कहकर उसने अपना वक्तव्य पूरा किया। ___ गंगराज ने शेष दोनों से विमर्श किया। बाद में उन्होंने कहा कि पट्टपहादेवीजी की भी राय मिल जाए तो अच्छा!
शान्तलदेवी ने कहा, "न्यायपीठ का निर्णय पट्टमहादेवी को और महासन्निधान को भी मान्य होगा। न्यायपीठ अपना निर्णय सुना सकती है।"
फिर उन नीनों न्यायाधीशों ने आपस में विचार-विमर्श किया।
बाद में गंगराज ने निर्णय सुनाया, "न्यायपीठ के हम तीनों जन अब एकमत हो इस राय पर पहुँचे हैं। राजमहल के कार्य को बड़ी दक्षता के साथ निबाहनेवाले ये बन्दी तमाशबीन हमारे गुप्तचर हैं, इसलिए इन्हें बन्धन से मुक्त कर यथावत् अपने कार्य में
352 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार