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के लिए इस धन्धे को स्वीकार किया, इस बात को हम नहीं मान सकते।"
"मुझे अपनी अपेक्षा से भी ज्यादा धन मिला, सच है। केवल इसी से मेरी बात को झूठ मान लेंगे तो वह अन्याय नहीं होगा ?"
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" एक निपट गँवार भी यह समझ सकता है कि यह एक लक्ष्यहीन रोजगार नहीं हैं। तुम पोय्सल राज्य की प्रजा नहीं हो। हमें लगता है कि तुम चोल राज्य की प्रजा हो। यह भी कहना पड़ता है कि तुम भी इस षड्यन्त्र में शामिल हो। ऐसा न हो तो बताओ कौन तुम्हें धन देता है ? इस बात को भी तुम नहीं जानते हो, ऐसा हम विश्वास नहीं कर सकते। यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा, उनका नाम बता दो।"
"निवेदन किया न कि मालूम नहीं!"
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'अगर यही तुम्हारा अन्तिम बयान है तो तुमसे सत्य कहलवाने का तरीका न्यायनी जानी है मायण, तुमने कहा कि यह चोल राज्य की प्रजा हैं। इन दोनों नाटकवालों की भी यही राय है। मगर यह अपने को हमारी प्रजा बताता है। सत्य क्या है ?"
"हमने जो निवेदन किया वह सत्य है। दूसरा नाटकवाला चाहे तो इस बात को प्रमाणित कर सकता है।" मायण ने कहा ।
"उसे बुलाया जाए।"
वह आया और साक्षी मंच पर जाकर खड़ा हो गया। "तुम्हारा धन्धा ?"
'फिलहाल तो मैं तमाशा दिखानेवाला हूँ। "
" फ़िलहाल के माने ?"
"
"मालिक ने जो आदेश दिया है, उसके पूरे होने तक ।'
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"मतलब ?"
"
'अब मैं मैं नहीं हूँ। देखनेवालों के लिए एक तमाशबीन हूँ।
अच्छा, इस बात को अभी रहने दो। यह चोल राज्य की प्रजा है ?"
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"हाँ । '
" इसे प्रमाणित कर सकते हो ?"
"हाँ, कर सकता हूँ। इस प्रसार करनेवाली टोली का आदमी पहले कह चुका
है कि यह पहले धर्मशाला का पर्यवेक्षक था। यह दूसरा आदमी वह है जो इसके साथ
उस समय पहरे पर था। इसका नाम मालूम है। यह गोज्जिगा है।"
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"कैसे मालूम हुआ ?"
"ये दोनों पहले तलकाडु के आक्रमण के समय, पोय्सल गुप्तचर दल की चट्टलदेवी को चोलराज के निर्वाहक अधिकारी दामोदर को सौंप देना चाहते थे। इन लोगों के जीवन में नीति-नियम कुछ नहीं। इनके मुँह से सत्य निकलता ही नहीं।"
348 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार
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