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________________ "हाँ। यह न्याय विचार ही उस कार्य के सफल होने का प्रमाण है।" "तुम्हारे मालिक के काम में और राजमहल की तरफ से इन लोगों को बन्दी बनाये जाने में क्या सम्बन्ध है?" "यही तो सारी घटना का रहस्य है।" "कैसी घटना?" 'इन लोगों ने तलकाडु के प्रान्त में प्रचार किया कि छोटी रानी और उनके राजकुमार की गुप्त हत्या का षड्यन्त्र चल रहा है, और उस षड्यन्त्र का मूल राजधानी में है। इसी तरह राजधानी के आसपास पट्टमहादेवीजी की गुप्त हत्या के षड्यन्त्र तथा उस षड्यन्त्र के मूल स्रोत को तलकाडु में होने की अफवाहों का प्रचार किया है।" "ये लोग-इसका मतलब?'' "ये ही, अब जो बन्दी बनाये गये हैं। इन लोगों का मुखिया चोलों के समय तलकाडु के चोलराज की धर्मशाला का पर्यवेक्षक था, और उस समय के व्यवस्थाअधिकारी का पहरेदार गोज्जिगा है। और उनके साथ के दूसरे लोग पोयसल राज्य की प्रजा हैं। यह सब अव बन्दी बनाये गये हैं।" "यह सब राजमहल से सम्बन्धित विषय हुआ। तुम लोग भी तो इनके साथ्य बन्दी बने हो। हम कैसे विश्वास करें कि तुम बन्धन से छूटने के लिए राजमहल की तरफदारी करते हुए इस तरह बात नहीं कर रहे हो! तुम्हारे और तुम्हारे मालिक का राजमहल से सम्बन्ध सम्भव ही नहीं। ऐसी हालत में तुम लोग मौके के अनुसार अपने को बदल लेनेवाले हो, यही माना जाएगा। ये सब बातें हमारे समक्ष निष्प्रयोजन हैं।" "न्यायपीठ कैदियों से पूछ सकती है कि हम उनसे कब मिले?" "भले कभी भी मिले हो, तुम लोग उनके इस काम में भागीदार ही तो बने?" "सिर्फ एक दिन के लिए। परन्तु इन लोगों के पास गुप्त रीति से हमने जिन लोगों को भेजा था, वे लोग अलग हैं। हमने तलकाडु में व्यवस्था अधिकारी को बताया है कि वे कौन हैं। उन्हें भी बुला लाये हैं तो न्यायपीठ उन्हीं से तहकीकात कर सकती है कि हमने क्या किया। बाद में मेरे कथन को सत्यता न्यायपीठ के समक्ष स्वयं ही आ जाएगी।" गंगराज ने पूछा, "हुल्लमय्या, इन्होंने जिन और लोगों के होने की बात कही, उन्हें यहाँ बुला लाये हैं?" "मैं बुला लाने के लिए इतना उतावला नहीं था। मायणजी के अनुरोध के कारण बुला लाया।" "अच्छा, उन्हें जब जरूरत होगी बला लेंगे।" ।'तुम्हें स्वयं इस बारे में कुछ कहना शेष है?" "मुझे लग रहा है कि मैं अभी न्यायपीठ की दृष्टि में विश्वासपात्र नहीं माना पट्टमहादेवी शास्तप्ला : भाग धार :: 345
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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