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________________ "अब साक्षी के लिए किसे बुलाया जाए?" नागिदेवण्णा ने पूछा। गंगराज ने बीच में कहा, "एक क्षण ठहरिए!"फिर वेण्णमय्या से पूछा, "आपने अपने विवरण में कहा कि एक बूढ़े ने उन नाटकवालों से बातचीत की थी और गाड़ी की ओर संकेत किया था। उस बूढे के बारे में कुतूहल पैदा नहीं हुआ? और उसके बारे में जानने का प्रयत्न भी नहीं किया?" "कुतूहल तो पैदा हुआ जानने का। परन्तु मेरा काम इन नाटकवालों पर नजर रखना और उनका पीछा करना था। इसलिए मैंने बूढ़े की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। वह नदी की ओर बढ़ गया तो मैंने समझा कि कोई बटोही भिक्षुक होगा। उसके शरीर पर फटे कपड़े और हाथ में सोंटा देखकर उसकी ओर देखने तक का कुतूहल मेरे मन में नहीं हुआ। वह भी तो पीछे मुड़कर देखे बिना ही चला गया।' "और कोई गवाह है? वेण्णमय्या साक्षी-मंच से उत्तर आया और अपनी जगह आकर बैठ गया। "हमारी ओर से अब और कोई गवाह नहीं । इन बन्दियों को ही बुलाया जाए!" हुल्लमय्या बोले। "आपके पास कोई गवाह है, मायणजी?" "हमारे गवाह बन्धन में हैं। आज्ञा हो तो उन्हीं को बुलवाऊँ ?' "कैदी सच बोलेंगे?" "उनसे सत्य उगलवाना होगा। न्याय-मण्डल को यदि उनके कथन में सचाई न लगे तो ऐसों के लिए कठोर दण्डविधान (किट्टिकोले) तो है ही।" गंगराज बोले। "जैसी मर्जी।" हुल्लमय्या ने कहा। गंगराज ने आदेश दिया, "मायण, बन्धन में आपके जो गवाह हैं, उन्हें बुलाया जाए।" "उन दो नाटकवालों में जो कैंचे कद का व्यक्ति है, उसे बुला लाओ।"मायण ने कोटपाल से कहा। उसे पकड़कर लाकर साक्षी-वेदी पर खड़ा किया गया। "इस न्याय- पीठ के सामने सच बोलना होगा।" "मैंने और मेरे साथियों ने सत्य ही कहा, तो भी व्यवस्था-अधिकारीजी ने विश्वास नहीं किया। हम निरपराध हैं, फिर भी हमें बन्दी बनाकर ले आये। जिनेन्द्र भगवान् की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि मैं सत्य ही बोलूँगा।" "वेण्णमय्या ने कहा कि उन्होंने तुमको और तुम्हारे साथियों को पन्तेमरल्लि में देखा। क्या यह सच है?" "नहीं। तब मैं या मेरे साथी वहाँ नहीं थे।" "तब तुम लोग कहाँ रहे?" 142 :: पदमहादेखी शान्तना : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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