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________________ अंश सम्मिलित होना है। ठीक उस समय तक पादत्राण तैयार कर. मुहूर्त के समय वहाँ पहुँच जाएँ। और हाँ, 'जोड़ा मत बनाना। मेरे दायें पैर का माप ले लें। उसके बराबर पादत्राण तैयार करना तुम्हारा काम है । वह कैसा हो, सो बाद में बताऊँगा। अभी माप ले लो।' स्वामी के कहे अनुसार मैंने माप ले लिया। बाद में भगवान् ने पादत्राण का आकार प्रकार कैसा हो, ऊँचाई कितनी हो, ऊपर की पट्टियाँ किस तरह की हों, अँगूठा कैसा बने, आदि-आदि सब बातें बतायीं और आदेश दिया, 'उस दिन सुबह तड़के हो उठकर नहा-धोकर गीले वस्त्र पहने, तुम्हें ही इसे ले जाना होगा, सो भी पैदल चलकर । और किसी को छुए बिना ही ले जाना होगा, और इसे वेलापुरी पहुँचाना होगा। उसे मैं पहनकर देखूगा। जब तक मैं यह न बताऊँ कि यह ठीक है, तब तक तुम्हें उसके साथ रहना पड़ेगा।'-.यो आदेश दिया। मैं आदेशानुसार बना लाया।" उत्तर की ओर के गाँव के चर्मकार ने कहा। दक्षिण के गाँव से पादत्राण लाने वाले दूसरे चर्मकार ने भी लगभग यही बात दुहरायी। "क्या तुमने नहीं पूछा कि दूसरे पैर के लिए पादत्राण कौन बनाएगा।" "पू तो स्वामी ने कहा, 'इसे तुम्हें नया पहला? जो जहा सो करो। न हो सके तो बता दो, दूसरे चर्मकार से कहूँगा'।" "ती तुम दोनों ने पहले एक-दूसरे को नहीं देखा?" "नहीं। यहीं, अभी थोड़ी देर पहले देखा।'' ये बातें हो ही रही थीं। इतने में महाराज और बम्मलदेवी वहाँ आ पहुँचे। उनके साथ शस्त्रसज्जित एक अंगरक्षक दल भी था। शान्तलदेवी ने महाराज को सारी बात बतायी। महाराज ने उस तिलकधारी को बुलाया और कुछ गरम होकर ही कहा, "श्री आचार्य जी ने जैसा हमें आदेश दिया है, हम वैसा ही करेंगे। हमें उनके आदेश पर पूरा विश्वास है। उनके आदेश में बाधा पैदा करने वाली किसी तरह की कार्रवाई के लिए यहाँ अवकाश नहीं देंगे। अन्न बे-रोकटोक रास्ता दें।" "यह धर्म-सम्बन्धी विषय हैं। हमें उस धर्म का स्वरूप मालूम है। हम इस मन्दिर को अपवित्र नहीं होने देंगे। सन्निधान हमें अन्यथा न समझें। यह मन्दिर भक्तों का है। राजमहल का स्वत्व नहीं।" उस तिलकधारो ने धृष्टता के साथ कहा। __ "भगवान् के सान्निध्य में इस तरह का हठ उचित नहीं। आप लोगों को हटाकर रास्ता बनाकर जाने की ताकत भी हममें है। परन्तु श्रोत्रिय जनों का रक्त न बहे, इसलिए फिर से हमारी यह प्रार्थना है कि चुपचाप रास्ते से हट जावें।" बिष्टिदेव की आवाज कुछ ऊँची हो गयी थी। "चर्मकारों की छाया भी पड़ जाए तो हम अपवित्र हो जाएंगे। नहा-धोकर धुले पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 37
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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