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________________ "उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो नहीं चाहते ? यों ही अनावश्यक बातों की कल्पना करके मन को खराब नहीं किया करो। मेरे तुम्हारे बरताव दूसरों के लिए आदर्श बनें, ऐसा होना चहिए। जनता हमसे अनुकरणीय व्यवहार की अपेक्षा रखती है। हम साधारण लोगों की तरह बरताव करेंगे तो वह मूर्खता होगी। ऐसे आचरण का क्या प्रयोजन ? वे वास्तव में अमंगल कर रहे हैं, यह बात प्रमाणित हो जाए, तब तुम्हारी राय को मैं मान्यता दूँगी। तब तक तुम गम्भीर होकर सहज रूप से व्यवहार करो। अगर तुम्हें असन्तोष भी हो तो उसे दर्शाना नहीं। अभी केवल रानी और राजकुमार मात्र नहीं आ रहे हैं, कुछ कैदी भी आ रहे हैं। उनके बारे में तहकीकात होनी हैं। उस तहकीकात के समय तुम भी उपस्थित रही तो तुम्हें सच्ची स्थिति मालूम हो जाएगी। इसलिए ऐसी बातों को मन में न रखकर सहज रीति से व्यवहार करना होगा। समझे ?" विनयादित्य ने तुरन्त कुछ कहा नहीं। "चुप क्यों हो ? मेरी बात मान ली है न ?" " मेरे मन में उनके बारे में क्यों ऐसी भावना हो गयी है, इसे आपको सकारण नहीं समझा सकता। यदि इस भावना को बदलना हो तो मुझे प्रमाण मिलना चाहिए। जैसा आपने कहा, यह तहकीकात यदि कुछ प्रकाश डाल सके तो उसे भी देखूँगा । आपकी बात की उपेक्षा नहीं कर सकता।" "ठीक। एक चेतावनी फिर देती हूँ। तुम्हारी तरफ से तुम्हारे व्यवहार से और जल्दबाजी के कारण रानी को या धर्मदर्शी को असन्तोष नहीं होना चाहिए। इस तरह का तुम्हें आचरण करना होगा।" " उनसे डरकर चलना पड़ेगा ?" "मैंने यह नहीं कहा, अप्पाजी। हमारी तरफ से दूसरों को असन्तोष नहीं होना चाहिए।" "उन्होंने ही उकसाया हो तो ?" " उस उकसाने से प्रभावित न होना भविष्य की दृष्टि से हितकर है।" 24 'कोशिश करूँगा।" " ठीक। अब तुम जाकर अपने अध्ययन में लगो । " विनयादित्य उठ खड़ा हुआ। वण्टी बजी। किवाड़ खुले । विनयादित्य चला गया। उसके पीछे शान्तलदेवी भी निकली। बेटे के इस ढंग ने उनके मन में भय पैदा कर दिया था। यदि इस तरह की द्वेष भावना इस उम्र में मन में पैठ जाए, तो यह आगे चलकर मात्सर्य का कारण होगी। उन्होंने सोचा कि अभी से इस भावना को जड़ से निकाल देना चाहिए। जब वह अपने विश्रामागार में पहुँचीं तब भी इस तरह की चिन्ता ने उनके मन को घेर रखा था। इसी के बारे में सोचते रहना वे नहीं चाहती थीं, इसलिए जल्दी पालकी तैयार रखने का आदेश दिया और उसके आते ही मन्दिर की ओर चल पडुमहादेवी शान्ता: भाग चार :: 327
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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