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________________ "मगर आपका घोड़ा तो यहीं घुड़साल में था न?'' "वह राजमहल का घोड़ा है। यदि घोड़ा यहीं रह जाता तो कोई गलती नहीं होती।" "तो क्या उन्हें यहाँ बुलवा लाने की सूचना है?" 'वे तो आएँगे ही, मगर कहा नहीं जा सकता कि कब तक आ पाएँगे।" "क्यों? उन्हें कुछ और भी काप शेष है ?" "क्या है वह ?" "कार्य करने वाले स्वयं आकर कहेंगे तो सचाई सामने आ जाएगी। मैं कुछ कहूँ तो वह कल्पना हो सकती है।" "बहुत जरूरी काम है वह ?" "मैं यह कह नहीं सकता कि वह कितना जरूरी है। हो सकता है कि आगे चलकर वहीं महत्त्वपूर्ण कार्य सिद्ध हो।" "आने पर व्यवस्था अधिकारी से मिलें तो दर्शन की व्यवस्था हो जाएगी।" "जो आज्ञा।" मायण ने झुककर प्रणाम किया। रानी लात्मीदेवी ने घण्टी बजायो। दरवाजा खुला। मायण ने प्रणाम किया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। व्यवस्था अधिकारी उसके पीछे चलने लगा तो उससे रानी बोली, "आप यहो ठहरें।" मायण चला गया। "चोलों की हुल्लडबाजी हमारे राज्य के इस भाग में हो रही है क्या?'' लक्ष्मीदेवी ने हुल्लमय्या से पूछा। "ऐसी कोई सूचना तक नहीं। राजधानी के खुफियों ने या हमारे अधीन रहनेवाले खुफियों ने भी ऐसी कोई खबर नहीं दी है। इसलिए निश्चित रूप से कह सकते हैं कि ऐसी कोई बात नहीं।" हुल्लमत्र्या ने निवेदन किया। __ "तो आपको सूचना दिये बिना ही राजधानी के खुफिये खबर ले गये?" ''राजनीतिक व्यवस्था के नियमों के अनुसार इस तरह के व्यवहार की कोई गुंजायश नहीं है। व्यवस्थापक अधिकारी को अपने प्रदेश की सारी बातें पालूम रहती हैं। और, खबर देते रहने की पति भी है।" "मगर यह मायण कहता है कि वह इसी के लिए यहाँ आया!" "मुझे उसकी बातों पर विश्वास नहीं।" "तो क्या वह विश्वसनीय नहीं?" "ऐसा नहीं। उसके आने से पहले और दो गुप्तचर भेजे गये थे। उन्हें वापस बुला लेने के लिए आया है तो इसका कोई दूसरा बड़ा कारण होना चाहिए, ऐसा लगता पट्टमहादेत शान्तला : भाग चार :: 319
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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