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________________ " ठीक। अब मुझे अनुमति दें तो मैं अपने मुकाम पर जाऊँ !" "ठीक है।" मायण वहाँ से विदा होकर अपने मुकाम पर आ गया। राजनीतिक कार्य से आनेवाले राजमहल के कर्मचारियों के ठहरने के लिए पृथक् आवास की व्यवस्था सभी प्रमुख केन्द्रों में थीं। तलकाडु में भी ऐसी व्यवस्था थी। मायण सीधा वहाँ गया। सूर्यास्त के पहले ही मायण वहाँ पहुँच गया था, फिर भी उसे हुल्लमय्या के निवास से वहाँ पहुँचने में विलम्ब हो गया। शाम का भोजन समाप्त कर वह लेट गया। यात्रा के कारण थका हुआ था, जल्दी नींद आ गयी। दूसरे दिन जल्दी जागा पेस बल से मुकुतरे के रास्ते पर चल पड़ा। वहाँ मुडुकुतोरे के पास की अमराई में पहुँचा। वह हाट का दिन था, इसलिए व्यापारी लोग पेड़ों की छाया में और इधर-उधर छाजन के नीचे अनाजों की रियाँ लगाने में व्यस्त थे। अनाज तथा और भी विकाऊ चीजों को लेकर गाड़ियों की कतारें आ रही थीं। वहाँ व्यापार अनाज के बदले भी होता था और नकद देकर भी । ग्रामीणजन सप्ताह भर के लिए आवश्यकता की चीजें खरीद लिया करते। पोटसल सिक्कों का ही चलन था । इस तरह के हाट-बाजारों में खेल-तमाशे हों तो उनकी शोभा बढ़ जाती है। यही वहाँ आये लोगों के लिए मनोरंजन है। वहाँ पहुँचकर मायण ने निरीक्षक दृष्टि से एक बार पूरे बाजार का चक्कर लगाया। बाजार के एक कोने में कुछ दूर पर खड़ी एक गाड़ी ने उसको आकृष्ट किया। उसे लगा कि परदे से ढँकी यह वही पूर्व परिचित गाड़ी है। वह सोच रहा था कि उस गाड़ी के पास कैसे पहुँचा जाए। यही सोचता वह उस तरफ कदम बढ़ा रहा था । सब लोग बाजार में अपने-अपने काम में मग्न थे। लेकिन उसकी आँखें उस परदेवाली गाड़ी पर ही लगी रहीं। कावेरी नदी विनय भाव से धीरे-धीरे बह रही थी। धूप चढ़ रही थी, रेत गरम हो रही थी। जहाँ कावेरी मुड़ती है, उस मोड़ पर पहुँचा ही था कि वहाँ उसे वहीं दो व्यक्ति दिखे जो नाचते-गाते खेल दिखानेवालों केसे भेस में थे। उसने तुरन्त उन्हें पहचान लिया। उनके पास जाकर मायण ने अपनी आवाज बदलकर पूछा, "कहाँ के हो ?" 'आवाज बदल लो और वेश भी बदल लो, तो क्या पहचान नहीं पाएँगे ? यहाँ आने की वजह ?" उनमें से एक ने पूछा । "ठीक, जिन्हें मैं ढूँढ़ रहा था, वही मिल गये। चलो, पट्टमहादेवीजी ने तुम दोनों को तुरन्त बुला लाने को कहा है। उन्होंने कहा है कि उनकी अनुमति के बिना तुम लोगों को भेजना गलत हुआ।" मायण बोला। LI L 'तो फिर हमारा आना फिजूल हुआ ?" "फिजूल तो नहीं, राजधानी हम कल चलेंगे। शायद हमें रानीजी से मिलकर 306 :: पट्टमहादेखी शातला भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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