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________________ "अभी परसों क्या हुआ, मालूम है ?" "परसों?" "परसों यानी विवाह के बाद, हमारे राजधानी लौटने के बाद, एक दिन यह दास उस रानी की चहेती दासी, वह मुद्दला है न, उसे पता नहीं क्या-क्या उपदेश दे रहा था।" "कहाँ?" "उन छोटी रानी-माँ के विश्रान्तिगृह से लगा एक रास्ता है न?" "वही जो पीछे से राजोद्यान और केलिगह की ओर जाने के लिए बना है?" "हाँ। वहाँ दास जोर-जोर से बातचीत कर रहा था। मैं उद्यान के फूलों को देखकर चित्र-कला तैयार करने गया था; अपना कार्य पूरा कर लौट रहा था कि बातें कान में पड़ी। वहीं रुककर, छिपकर सुनने लग गया।" "क्या?" "गलत है रेविमय्या, ऐसे छिपकर सुनना। ऐसे छिपकर सुनना मैं चाहता भी नहीं, ऐसा काम मुझे पसन्द भी नहीं। अनायास ही बात कानों तक पहुँची, और विषय हमसे सम्बन्धित था, फिर बिना सुने कैसे रहा जा सकता था?" "पट्टमहादेवीजी को बताया?" "नहीं। उसके यहाँ से चले जाने की प्रतीक्षा कर रहा था। अब बता दूंगा। उससे पहले तुमसे विचार-विनिमय कर लेना ठीक मालूम पड़ा।" "कहो, अप्पाजी!" "दास ने सवाल किया—'यह पोय्सल सिंहासन कल किसका होगा जानती हो?' यह मेरे कान में पड़ी पहली बात है। सुनूं या न सुनें, इस पर विचार करने के लिए समय ही कहाँ था रेविमय्या? बस सुनता हुआ खड़ा रहा। मुद्दला ने पूछा, तो सिंहासन किसका होगा?' इसका उत्तर उसने दिया, 'महाराज का जो बेटा अपने पिता के धर्म का अनुयायी होगा, वहीं आगे राजा बनेगा।' उस स्त्री ने जवाब दिया, 'सभी बच्चे अपने पिता के धर्म के ही होते हैं ? तो उसने कहा, 'हाँ, ऐसा होना लोकरूद्धि है। परन्तु यहाँ उस रूद्धि और परम्परा के लिए कोई स्थान ही नहीं। तुम ही देखो! तुम्हारी पट्टमहादेवी उधर पिता के धर्म का भी अनुसरण नहीं करती। इधर पति के धर्म में भी शामिल नहीं हुई। अपने को बहुत बड़ा मान, उस नंगे बाबा के धर्म का पालन कर रही हैं। ऐसी माँ अपने बच्चों को पिता के धर्म का अनुसरण करने देगी? तुम ही सोचो। देखो मुद्दला, बातों-बातों में यह बात मुंह से निकल गयी। कभी कहीं किसी से कह मत देना । तुम अपने बारे में या अपने बच्चों के बारे में इस धार्मिक चर्चा को मत छेड़ बैठना । तुम्हारे पति का धर्म तुम्हारे लिए और तुम्हारे बच्चों के लिए ठीक है। अलावा इसके, तुम्हारे पति ने इस दुनिया में अत्यन्त श्रेष्ठ श्रीवैष्णव धर्म का पालन किया है। पट्टपहादेवी शान्तला : भाग चार :: 281
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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