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________________ "ठीक।" कहकर बिट्टिदेव ने इस बात को वहीं समाप्त कर दी थी। फलस्वरूप रानी लक्ष्मीदेवी और उसका बेटा कुमार नसिंह राजधानी में ही रहे आये। महाराज की ओर से सप्ताह में एक बार समाचार मिलता और इधर से भी खबर भेनी की रानी पदमीती भी पास हड़ से नानी ना रही थी। महाराज के दिग्विजय-यात्रा पर रवाना होने के चार पखवाड़ों के बाद, एक दिन पट्टमहादेवी को मारसिंगय्या का एक पत्र मिला। उसमें एक खुशखबरी थी। कुमार बल्लाल का विवाह पक्का होने का समाचार था। साथ ही यह भी समाचार था कि इन परिस्थितियों में यह विवाह राजधानी में सम्पन्न नहीं हो सकेगा। वह राज-वैभव का द्योतक होने की बजाय धार्मिक शास्त्र-विधि से हो। यह भी बताया गया था कि इस विवाहोत्सव का आयोजन तुंगभद्रा के उत्तर की तरफ, युद्ध-क्षेत्र के निकट ही करने का आदेश स्वयं महाराज ने दिया है। पत्रवाहक से युद्ध-क्षेत्र की भी कुछ खबरें शान्तलदेवी को मालूम हुईं। विवाह का निमन्त्रण कहाँ-कहाँ, किस-किस को दिया गया है, इस बात का भी विवरण मालूम हुआ। राजमहल के निकट सम्बन्धियों और कुछ प्रमुख अधिकारियों के लिए ही निमन्त्रण था। और यह भी बताया गया था कि इस विवाह का किसी तरह का प्रचार नहीं किया जाना चाहिए। यदि यह समाचार पहले से ही फैल गया, तो शत्रु अवसर का लाभ उठाकर हमला कर सकते हैं। ऐसा मौका नहीं आना चाहिए। राजधानी से थोड़े-से लोगों को हो रवाना होना था। पट्टमहादेवी, रानी लक्ष्मीदेवी, विनयादिल्य, नरसिंह, माचिकब्बे, रेविमय्या और विवाह के लिए आमन्त्रित रानी पद्मलदेवी, चामलदेवी, बोप्पिदेवी और तलकाडु से पहले ही पहुँचनेवाले तिरुवरंगदास, ये ही प्रमुख जन थे। इन सबकी सुविधाओं का ख़याल रखने के लिए आवश्यक नौकरचाकर, और देख-रेख के लिए एक रक्षक-दल, ये सब इस टोली में सम्मिलित हुए। नियोजित स्थान पर उनके पहुँचने तक कोवलालपुर से छोटे बिट्टिदेव और चोकिमय्या भी आ पहुँचे। उत्सव के सीमित होने पर भी, वहीं राजोचित वैभव कम नहीं था। निश्चित मुहूर्त में कुमार बल्लाल का महादेवी के साथ विवाह सम्पन्न हो गया। मारसिंगय्या ने ही इस कन्या का नाम महादेवी रखा था। इस विवाह से उन्हें हर्ष हुआ था। एक तरफ मरियाने का घराना, दूसरी तरफ मारसिंगय्या का घराना । इन दोनों का सम्बन्ध पोयसल राजघराने के साथ जिप्स मुहूर्त में हुआ था, तब से वह, अलग-अलग रूप में बराबर बढ़ता रहा। विवाहोत्सव की समाप्ति पर बिट्टिदेव ने एक आदेश दिया। उसके अनुसार कुमार बल्लाल को रानी महादेवी के साथ राज्य के पश्चिमोत्तर प्रदेश में, चलिकेनायक और उसके पुत्रों की मदद से, राज करना था। फिलहाल्ल बल्लाल युद्ध क्षेत्र में न आवे, पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 275
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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