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________________ " हो जाय, कोई हर्ज नहीं। बात बनती है तो यह काम भी सम्पन्न हो जाए। हमारा उस ओर ध्यान ही नहीं था। सिंगिमय्या भी हमसे ऐसी अपेक्षा कर रहे होंगे।' "ऐसा करने से मेरे माता-पिता को भी कुछ सन्तोष होगा। वे आजकल कुछ भी बताते नहीं। हमारे पिताजी के भी कानों में आचार्यजी के भक्तों की टीका टिप्पणी की बातें पड़ी हैं, इससे वे है। श्रम से यह तिरात्य! जन जीवन में सह-अस्तित्व और समन्वय की साधना की प्रतिष्ठा करने वाला आदर्श राज्य ! ऐसे इस पोटसल राज्य में कहीं भेदभाव पैदा न हो जाए-धर्म या जाति के कारण, यह भय उनके मन में पैदा हो गया है। कुमार बल्लाल का विवाह हो जाए और फिर वह, सन्निधान के कथनानुसार, उत्तर के क्षेत्र का निर्वहण करने यदि जाता हैं तो ये भी वहाँ जाकर उसके साथ रहना चाहते हैं।" शान्तलदेवी ने कहा । "सो तो ठीक हैं। लेकिन अभी हमारी चिन्ता कुछ और ही है। आचार्य के भक्तों पर काबू करना कोई कठिन कार्य नहीं हैं पर कुमार नरसिंह का मन अभी से बिगड़ जाए तो क्या हाल होगा ?" G 'सन्निधान को ऐसा सन्देह क्यों ? कौन बिगाड़ रहा है उसे ?" "कौन क्रा? वही तिरुवरंगदास । बेटी के मन को बिगाड़ रखा है न ? हम अभी यही सोच रहे हैं। हम सोच रहे हैं कि आचार्यजी के पास इस आशय की एक चिट्ठी भेज दें कि वह अपने इस शिष्य को अपने हो पास बुला लें।" " चिट्ठी से क्या होगा ? उसका कुछ भी अर्थ निकाला जा सकता है। आचार्यजी स्वयं जानते हैं, इसलिए पत्र लिखकर उन्हीं के हाथ में देकर आचार्य जी के पास भेज देना अच्छा है। उसमें यह बता दें कि आचार्यजी के पास ही रहने की इच्छा प्रकट करने से इन्हें भेजा हैं तो शायद ठीक होगा।" " सो भी उतना ठीक न होगा। हमारी राय में तो उससे यह कहकर कि इस पोय्सल राज्य के अन्न-जल का ऋण चुक गया है, उसे भेज देना अच्छा होगा ।" "कुछ भी करें, उनके मुँह पर ताला नहीं लगाया जा सकता। इसलिए उन्हें कहीं दूर के मन्दिर का धर्मदर्शी बनाकर भेज दिया जाए। बम्मलदेवीजी के आसन्दी प्रदेश के बाणवृर, कणिकट्टे में केशवजी के मन्दिर हैं। यहाँ भेज दें तो मंचियरसजी सँभाल लेंगे। रानी लक्ष्मीदेवी यहीं रहें। यादवपुरी न जाएँ। पिता का पुत्री से सम्पर्क न हो तो अच्छा।" "बाप-बेटी में सम्पर्क न रहना ही अच्छा है। यों देखा जाए तो यादवपुरी यदुगिरि या वह्निपुष्करिणी भी उसके लिए ठीक होंगे। ये बाणषूर, कणिकट्टे से बेहतर हैं; क्योंकि बाणवूर यहाँ से अधिक-से-अधिक तीन कोस दूरी पर है। मुझे तो लगता हैं कि उन्हें तलकाडु के कीर्तिनारायण मन्दिर का धर्मदर्शी बनाकर भेज दें। सबसे दूर रहेंगे।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार 269
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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