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________________ "अकेला महादेवा ही पर्याप्त नहीं। सभी रानियों को बुलवाना चाहिए, बिट्टियण्णा तः दण्डनायक की हैसियत से रहेगा ही। उसके साथ कुमार बल्लाल, और छोटे बिट्टिदेव भी रहें । वे दोनों अब इस लायक हैं। उन्हें भी राज्य-कार्यों में लगाना चाहिए।' "रानी बम्मलदेवी का सभा में आने का कुछ माने भी है। परन्तु राजलदेवी और लक्ष्योदेली मन्या करने के लिए वहाँ उपस्थित होंगी?" "उनके रहने से बाधा क्या है ?" 'गजलदेवी रहेगी तो कोई बाधा नहीं। परन्तु लक्ष्मीदेवी का रहना अनुचित ''सो क्यों?" "उसकी बुद्धि अभी इतनी परिपक्व नहीं। एक स्तर तक आकर रुक गयी हैं। स्वार्थ से भरी । वहाँ केवल विवेक--शून्य तेज जीभ मात्र है, इसलिए उसका दूर रहना हो अच्छा।'' __ "उचित स्थान न मिलने से अतृप्ति का भाव होगा ही, तब वह अतृप्ति स्वार्थ को अनुचित बढ़ावा भी देगी न? इसलिए सन्निधान कम-से-कम मेरे लिए रानी लक्ष्मीदेवी को भी बुलाएँ।" "किसी भी तरह को उपयुक्त सलाह पदे सकनेवालों को बुलाने से क्या लाभ? सरी के दिन में नातं पुरानी ही नहीं।" "कुछ भी हो, वह पोसल रानी तो है न?" "ठीक, स्वीकार है।" “अब तिरुवरंगदास को देश-निकाले के दण्ड के बारे में सन्निधान ने जो बात कही सो स्पष्ट करें।" "हाँ।'' कहकर विट्टिदेव ने यादवपुरी तथा बेलुगोल में, खासकर कटवप्न पर, उनके और लक्ष्मीदेवी के बीच जो बातचीत हुई थी. वह सब कह सुनायी। नियोजित मन्त्रागा-सभा बैठी। बहुत समय के बाद इस तरह की सभा बुलायी गयी थी। इससे लोगों में कुतूहल बढ़ा था। महाराज बिट्टिदेव, पट्टमहादेवी शान्तलदेवी, रानो बम्मलदवी. राजलदेवी, लक्ष्मीदेखी, प्रधान गंगराज और उनके बेटे एचिराज, घोप्पिदेव, सचिव मादिराज, दण्डनायक मरियाने, भरत और बिट्टियण्पा, सचिव पुनीसमण्या, रायण टण्ड नाथ, कोनेय शंकर टण्डनाथ, केलदहत्ति नायक, मारसिंगय्या, चौकिमय्या आदि घभी प्रमुख उम सभा में उपस्थित थे। राजकुमार बल्लालदेव, छोटे बिष्टिदेव भी उपस्थित 2111 : पट्टमहादेवा शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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