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________________ से हमारी प्रार्थना है। हम महाराज और पट्टमहादेवी से जाने की अनुमति माँग रहे हैं। एक और बात बता देना इस समय जरूरी है। हमारे यहाँ से चले जाने के बाद जो कोई श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ की बात छेड़कर, समाज की शान्ति को भंग करेगा वह मानव-द्रोही और देव-द्रोही होगा-इसे न भूलें।" आचार्यजी के कहने में एक सन्तोषपूर्ण आवेश था। बिट्टिदेव ने कहा, "पूज्य चरणों में हमारी एक विनम्र प्रार्थना है। आपको नियन्त्रित करने की शक्ति हममें नहीं है। सभी बन्धनों से मुक्त होकर संन्यास स्वीकार करनेवाले आपके स्वातन्त्र्य को कोई छीन नहीं सकता। अन्त:प्रेरणा के अनुसार आप चलते हैं, इसके अनेक प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं। जैसा आपने बताया, इस पोय्सल राज्य में मानव. मानव में भेद है, इसे हम नहीं मानते। मत, धर्म-यह सब वैयक्तिक विषय हैं । इस सम्बन्ध में कोई जोर-जबरदस्ती नहीं। आपके चले जाने पर यहाँ आपके शिष्य रहेंगे, एसा हम समझते हैं। उन्हें भी यह राजमहल जितना हो सके, अपनी तरफ से मदद देता रहेगा। आपकी पादधूलि से हमारा यह राज्य पुनीत हुआ है। सदा हम पर आपका आशीर्वाद रहे। कब यात्रा होगी, यह बताएं तो उसके लिए उचित व्यवस्था कर दी जाएगी। फिर भी लगता है कि विदा करना कठिन है।" ___ "भगवान् की इच्छा के अनुसार हम सबको चलना होगा न? हम जल्दी ही यात्रा करेंगे। जब तक सचिव नागिदेवग्णाजी हैं तब तक किसी बात की चिन्ता नहीं। पोय्सल जनता को हमारा यह अन्तिम प्रणाम है।" आचार्यजी ने हाथ जोड़कर सिर झुकाया। इसके बाद लोगों को जाने का आदेश दिया गया। समारो भान होने लगा कि वे किसी और लोक में हैं, यदुगिरि में नहीं। सभी जन बहुत भारी दिल लेकर वहाँ से निकले । वहाँ के मौन को कोई भेद नहीं सका था। आचार्यजी चार-पांच दिनों के बाद प्रस्थान कर गये। इधर रानी लक्ष्मीदेवी की इच्छा के अनुसार महाराज, पट्टमहादेवी तथा राजपरिवार के अन्य सारे बन्धुबान्धव यावदवपुरी के लिए रवाना हुए। __ महाराज को वहाँ छोड़कर पट्टमहादेवी और उनके बच्चे तथा उनके माता-पिता, शेष रानियाँ, रानी पद्मलदेवी और उनकी बहनें, सब दोरसमुद्र की ओर लौट चले। वहाँ से रवाना होने से पहले, शान्तलदेवी ने महाराज से विनती की कि वहाँ के मन्दिरों का कार्य समाप्त होने पर तुरन्त खबर भेजेंगे। सन्निधान रानी और राजकुमार के साथ अवश्य पधारें । बिट्टिदेव ने वास्तव में यादवपुरी में रहने की बात सोची नहीं थी। यह शान्तलदेवी की व्यवस्था थी जिसे उन्हें मानना पड़ा था। रानी लक्ष्मीदेवी या राजकुमार को किसी तरह की अस्वस्थता नहीं थी-यह बात मालूम होने पर भी महाराज ने या पट्टमहादेवी ने इस सम्बन्ध में कोई बात नहीं छेड़ी। रानी बम्मलदेवी ने या रानी राजलदेवी ने अभी गर्भ धारण नहीं किया था, यह जानकर रानी लक्ष्मीदेवी खुश थी। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 235
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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