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________________ वाले ही राजा बनें, यह कभी हमारी इच्छा नहीं रही। वह उचित भी नहीं।" "तो चोल राज्य में ही आप यह काम करते रह सकते थे न?" "तुम्हारे मुँह से यह बात निकली तो इसका कारण क्या हैं, जानती हो ? तुम्हारी जानकारी गलत है।" 1 'गलत या सही, यह मैं नहीं जानती। सुना है कि चोलनरेश शिवजी के बड़े भक्त हैं। उन्होंने आपको कष्ट ही नहीं दिया, बल्कि आपकी आँखें निकलवाने का भी निर्णय किया था। आप अपने प्राण और आँखें बचाने के लिए उधर से भागकर आये।" "ऐसा किसने कहा ?" "जिन्होंने आपको वहाँ से भागने में सहायता दी, उन्होंने " " 'उनका क्या नाम है ?" " "नहीं, बेटी ! यों आगा-पीछा सोचे-समझे बिना आचार्यजी से ऐसा सवाल कर रही है ? मूर्ख लोग कुछ कह सकते हैं, रोशन तुम रानी होनी पर भी तुम विवेचना - बुद्धि नहीं आयी ?" बीच में ही तिरुवरंगदास बोल उठा। इस इरादे से कि अपने ऊपर आनेवाले आरोप से छूट जाए। "जो भी हो, हमें बात मालूम हो तो अच्छा!" आचार्यजी ने फिर पूछा । "कोई था एक पागल। राजमहल में जब तहकीकात हुई थी तब वहाँ आकर व्यक्तिगत रूप से उसने कहा था, उसके नाम-धाम वगैरह की याद रानी को कहाँ होगी ? मुझे ही याद नहीं।" कहकर तिरुवरंगदास ने बात को टालने की कोशिश की। "मालूम हो तो बताएँ, नहीं तो नहीं। यों तो ऐसी बातें सुनते सुनते हम उसके आदी हो गये हैं। देखो लक्ष्मी, एक बात याद रखो। पहले भी हम एक बार कह चुके हैं, अब भी कहेंगे। तुमने अपने जीवन में जो सौभाग्य प्राप्त किया है उसे वैसे ही बनाये रखना चाहो तो तुम यहाँ की रीति-नीतियों के अनुसार अपने को ढालो और पट्टमहादेवी पर पूर्ण विश्वास रखकर जीना सीखो। धर्म-तत्त्व आदि सभी बातें समझना तुम्हारे लिए कठिन कार्य है। इन बातों में पड़ना तुम्हारे लिए श्रेयष्कर नहीं है। पोय्सल सिंहासन न्याय रीति से जिसे मिलना चाहिए, उसी को मिलेगा। वह मेरी या तुम्हारी इच्छा के - अनुसार नहीं होगा। धर्म के नाम पर अण्ट-सण्ट बातें सोचकर भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। अच्छा यह बताओ, राजधानी कब जा रही हो?" आचार्यजो ने पूछा । "अभी निश्चय नहीं किया। यादवपुरी जाना है। कावेरी में स्नान आदि करने की अभिलाषा है। अभी सन्निधान भी राजधानी में नहीं हैं। इसलिए देर से गयी तो भी कोई हर्ज नहीं।" "तिरुवरंगदास! तुमको वह्निपुष्करिणी का अच्छा परिचय हैं ही। रानी को यहाँ ले जाओ। पता नहीं, किसी ने रानी के मन में असूया पैदा कर दी है। रानी को इस असूया से छुटकारा मिलना ही चाहिए। नहीं तो उसी धुन में रहने पर उसकी होनेवाली पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार: 209
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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