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________________ "तो मतलब यह कि अब आदेश का उल्लंघन करोगे?'। "अब तक शुद्ध हदय वालों की सेवा ही मेरे भाग्य में रही है।'' "अब ऐसे भी लोगों के लिए तुम्हें यह काम करना पड़ेगा। मैंने भी तो सन्निधान की इच्छा को पूरा करने के खयाल से गलत काम किया न?।। "उस ऊँचाई तक मैं कैसे पहुँच सकूँगा?" "तुम में जो संयम है उसके बल पर तुम ऊँचे से ऊँचे स्तर तक पहुँच सकोगे। तुम्हारी इच्छा न भी हो, तो भी तुम्हें यह काम करना ही पड़ेगा, रेविमय्या। सन्निधान की अनुपस्थिति में जो कुछ गुजरा है उसे ज्यों-का-त्यों, उनके लिए विश्वसनीय ढंग से कह सकनेवाला दूसरा कोई नहीं। सन्निधान को तुम्हारी बातों पर कितना विश्वास है सो तुम जानते ही हो। कहते हैं कि तुमने उन्हें कई बार संयम सिखाया है। वास्तव में सन्निधान तुम पर उतना ही गौरव रखते हैं जितना मुझ पर।" "इस बारे में मुझसे अधिक भाग्यवान् कोई नहीं। आपकी मर्जी।" बात समाप्त हुई। शान्तलदेवी ने कहा, "आपने उद्यान देखा ही नहीं। जब से आयीं तब से यहीं बैठी हैं। और अब खड़ी-खड़ी थक गयी हैं। थकावट न हो तो एक चक्कर लगा आएँ?" "नहीं, किसी और दिन आएंगी। प्रकृति के सौन्दर्य की अनुभूति के लिए प्रफुल्ल मनःस्थिति होनी चाहिए। अभी राजमहल चलें।" पद्मलदेवी ने कहा। वे सब राजमहल को ओर चल दी। समय-समय पर युद्ध-क्षेत्र से समाचार मिलता रहता था। मसणय्या के कब्जे से हानुगल को छुडाना आसान नहीं था। उसे रसद, धन और जन काफी परिमाण में मिला करता था, इसलिए उसकी शक्ति को तोड़ना बिट्टिदेव के लिए दुस्साध्य हो गया था। युद्ध लगातार चलता ही रहा। पोय्सल सेना के लिए भी किसी बात की कमी न थी। सव आवश्यकताएं व्यवस्थित बंग से पूर्ण होती रहीं। दोनों तरफ के सैनिक हताहत हो रहे थे, फिर भी ऐसा लगता था कि किसी की शक्ति कम नहीं हुई। बिट्टिदेव को ऐसा प्रतीत होने लगा था कि पिछली बार के दस सामन्त राजाओं को सम्मिलित सेना का सामना करते समय भी ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। परिणामस्वरूप बिट्टिदेव के मन में अचानक विचार उत्पन्न हुआ कि जब तक शत्रु की रसद का रास्ता न रोका जाए, तब तक उसकी शक्ति कम नहीं की जा सकती। इस विचार के आते ही उन्होंने रसद के पहुंचने का रास्ता ढूँढ़ने के लिए गुप्तचरों को भेजा। पट्टमहादेवी शातला : भाग चार :: 20]
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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