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________________ बाँटने वाले हों। इसलिए गर्भ-निरोध करवाया है। कपर से मीठी-चुपड़ी बातें करती है। अन्दर ही अन्दर भ्रूण-हत्या भी की जा सकती है। इसलिए ऐसा मत समझो कि तुम्हारी सन्तान सुरक्षित है। बहुत होशियार रहना होगा। यादवपुरी जाना चाहा तो तुमको रोककर यहीं क्यों रखा ? मैं केवल कट्टर वैदिक हो सकता हूँ, मगर बेवकूफ नहीं। मुझे इस तरह की सभी बातों का पता है। मैंने कई घाटों का पानी पिया है। यों सभी पर विश्वास करके धोखे में मत पड़ो, समझ गयी न?" "यह सच है? क्या पट्टमहादेवी नहीं चाहती कि मेरा लडका हो? शेष दोनों रानियों की आँखों में धूल झोंककर उनका गर्भ-निरोध कराया गया है ? पिताजी, आप कुछ भी कहें, विश्वास करना कठिन है।" "तुम जैसी मूर्ख को यह सब कैसे मालूम हो!" "तो ऐसा कुछ करना हो तो उनको वैधजी की मदद लेनी पड़ेगी न?" "मालूम न हो तो मदद लेनी होगी। पट्टमहादेवी वैद्यक भी जानती है। खासकर गर्भ-निरोध, गर्भपात, भ्रूणहत्या, विष-प्रयोग आदि का पता न लग सके, ऐसे धीरेधीरे मारनेवाले जहर का प्रयोग करने में वह सिद्ध-हस्त है। ऐसा न होता तो महाराज बल्लाल मरते ही क्यों?" "यह क्या पिताजी, आपकी बातें सुनते हैं तो सारा शरीर ही काँप उठता है ! क्या महाराज बल्लाल को जहर देकर पार डाला गया?" "मुझे क्या मालूम? प्रजा के मुंह से सुनी बात मैंने कही। पहले हो मुझे यह ज्ञात होता तो यह विवाह ही नहीं करवाता। अब विवाह के बाद तुम्हारी और तुम्हारी सन्तान की रक्षा का मुझे ध्यान रखना है या नहीं, तुम ही बताओ? यों ही उस धर्मदर्शित्व को त्याग देता?" "तो अब मैं क्या करूँ?" "पट्टमहादेवी की तरफ से कुछ भी आए, उसे तुम मत खाओ। मगर याद रखो कि किसी को इसकी जानकारी न हो। बुद्धिमानी से काम लेना होगा।" "तो क्या इस तरह डरते-डरते ही मुझे दिन गुजारने होंगे?" "अब दूसरा चारा नहीं। सन्निधान की वापसी तक तुम्हें मुँह बन्द करके बुद्धिमानी से दिन गुजारने होंगे।" "ठीक है। आप भी क्या कर सकेंगे, पिताजी ? मेरा कर्म-फल ही ऐसा है। मांबाप से अपरिचित मुझे पता नहीं और क्या-क्या भुगतना पड़ेगा। मैं चाहे कुछ भी होऊँ, पहले स्त्री हूँ। अपनी सन्तान की रक्षा करने के लिए मुझे जो भी करना होगा, करूंगी। यदि सारी दुनिया का वैर मोल लेना पड़े तो भी तैयार हूँ।" "इस तरह का दृढ़ संकल्प अच्छा है परन्तु दुनिया से वैर नहीं रखना है। हमें अपना काम बुद्धिमानी से करना होगा। मैं तो रहूँगा ही। जैसा मैं कहूँ, करती जाओ। 'पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार : 195
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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