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________________ ही आयी होंगी। अलावा इसके जो आयी हैं वे पहले की पट्टमहारानी और रानियाँ ही तो हैं तुरन्त कुछ उत्तर न देकर उसने इर्दगिर्द देखा। इतने में अंगरक्षक नौकरानी को लिवा लाया । पद्मलदेवी को बात मालूम हो गयी ।" हमारे आते ही इस तरह क्यों चल पड़ी ?" उन्होंने पूछा । उसने गला साफ करते हुए कहा, "कुछ नहीं, आप लोगों के आने की खबर रानीजी को देने के लिए निकली थी, इस अंगरक्षक ने कहा कि आपने बुलाया है सो चली आयी । " " बेचारी वह एकान्त में बातचीत कर रही होंगी। मातृहीन है न ? पिता ही बेटी के लिए माँ के स्थान पर हैं। गर्भिणी हैं, कई आशा-आकांक्षाएँ हो सकती हैं। सबसे कहते संकोच हो सकता है। वे हैं कहाँ ?" " 'केलिगृह में हैं।" " उनको अपने तई रहने दीजिए। हम वहाँ नहीं जाएँगी । यों ही बगीचे में सैर करेंगी। तुम यहीं रही, चट्टला । पट्टमहादेवी ने कहा था कि कुछ नये किस्म के फूलों के पौधे लगाये गये हैं। उन्हें देख आएँ, चलो।" पालदेवी ने कहा । 44 'अंगरक्षक हमारे साथ क्यों ? यहीं रहें न ? बगीचे का द्वार जब इनके द्वारा सुरक्षित... " बीच में ही पद्मलदेवी ने कदम आगे बढ़ाते हुए कहा, "हाँ-हाँ, चलो, हम स्त्रियाँ ही जाएँगी।" दोनों अंगरक्षक वहीं ठहर गये। चट्टला और तीनों रानियाँ केलिगृह की ओर जाने के रास्ते को छोड़कर दूसरी ओर चल दीं। द्वार से काफी दूर चलने के बाद चट्टला ने कहा, "रानीजी यों ही सैर करने नहीं आयी हैं। नौकरों को आदेश भी दे रखा हैं कि किसी को अन्दर न आने दें।" " तो बाप-बेटी का क्या रहस्य हो सकता है ?" पद्मलदेवी ने कुछ उत्तेजित होकर कहा । " शंका करने से बेहतर है सुन लेना । है न?" चट्टला ने सलाह दी। " छिपकर सुनना उचित होगा ?" चामलदेवी ने बीच में कहा। "देखो चामु, एक बात सुनो। धर्मदर्शित्व का काम छोड़कर यहाँ हैं तो उनके मन में कुछ बात हैं। हम सब जानते हैं कि उनका दिल अच्छा नहीं। अब उस प्रथम गर्भिणी के मन को कुछ अष्ट- सण्ट बातों से कलुषित कर दें और उससे उसका दिल दिमाग अशान्त हो जाए तो उस होनेवाली सन्तान पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? इसलिए यह जान लें कि क्या बात हैं। यह आकस्मिक है। हम छिपकर सुनने के लिए तो आय नहीं। उनकी जानकारी के बिना सुनना सम्भव हो सकता है ?" "यह इस बात पर अवलम्बित है कि वे कहाँ बैठकर बात कर रहे हैं। पीछे 192 :: पडुमहादेवो शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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