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________________ "बिना गलतो के दुःख क्यों भोगें? यह भी कोई न्याय है?" 'जो सच्चे हैं वे किसी से नहीं डरते।" "तो क्या मैं सच्ची नहीं ?" "इस प्रश्न का उत्तर दूसरों से जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपने अन्तर से पूछकर समझ लेना चाहिए। यदि तुम यहाँ न ठहरकर चली जाओगी तो टीका-टिप्पा करनेवालों को मौका मिल जाएगा, इसलिए रह जाओ।" "जिसे करने की इच्छा नहीं, उसे करने की प्रेरणा दे रही हैं ? मुझे आश्चर्य होता है है! क्या मेरी परीक्षा लेना चाहती है?" "तुम्हारी परीक्षा लेने में मेगा वाणा प्रयोगा ?" "सो तो आपका अन्तर ही जाने ।' "तो इस बारे में मुझे अब कुछ नहीं बोलमा है। इसमें किसी का माध्यम बनना सन्निधान पसन्द नहीं करते। तुम स्वयं जाकर उनसे पूछ लो, यही अच्छा होगा।" "यदि आप न पूछेगी, तो मुझे ही पूछना होगा। दूसरा चारा ही क्या है?" "वही एक पार्ग है, साफ-सीधा मार्ग!" "ठीक हैं, वहीं करूंगी।" कहकर लक्ष्मीदेवी चली गयो। रातभर रामायण की कथा सुनने के बाद भी कोई यह पूछे कि राम का सीता से क्या सम्बन्ध है, यही बात हुई । शान्तलदेवी ने सोचा, ऐसा क्यों? उन्हें यह मालूम नहीं पड़ा कि यह सब तिरवांगदास का तन्त्र है। उसने गुप्त रीति से अपनी बेटी को बताया था, "देखी बेटी लक्ष्मी, आचार्य जैसे व्यक्ति ने भी बहाना बना छुटकारा पा लिया। इस शिवालय से हमारा क्या मतलब? दुसरों के देवी-देवताओं की, अन्य धर्म की निन्दा नहीं करनी चाहिए-यह पाठ पढ़ा दिया, हमने भी सुन लिया। वैसा ही करेंगे। मगर दूसरे देव की सेवा करने के लिए हमसे कहनेवाले ये कौन होते हैं ? इसलिए हम भी आचार्यजी की ही तरह खिसक जाएँ तो अच्छा ! किसी तरह से चल देने का निश्चय कर लो। हम चल देंगे।" शान्तलदेवी के विश्रायागार से निकलकर लक्ष्मीदेवी सीधे ब्रिट्टिदेव से मिलने गयी। उसका भाग्य अच्छा था । दर्शन हो गये। इतना ही नहीं, वह अपनी इच्छा प्रकट कर ही रही थी कि इतने में किसी विचार-विनिमय के बिना बिट्टिदेव ने कह दिया, ''ठीक है, तुम्हारे पिता भी साथ होंगे न? कत्र रवाना होने की सोची है?'' "यदि दिन अच्छा हो तो कल ही..." लक्ष्मीदेवी ने कहा। "ठीक है। अपने पिता से पूछकर निश्चय कर लो । रेविमय्या सारी व्यवस्था कर देगा।'' कहकर बात खतम कर दी। लक्ष्मीदेवी का काम बन तो गया, मगर वह वहाँ से गयी नहीं। वहाँ बनी रही। "और कुछ?" बिट्टिदेव ने पूछा। 160 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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