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सकता । यह समझकर हमें आज आगे कदम बढ़ाना होगा। महत के समय कहीं किसी तरफ की किसी तरह की अड़चन नहीं पैदा होनी चाहिए। यहाँ निर्णय कर लेने के बाद भी यदि कोई गड़बड़ी पैदा करें या रोक-रुकावट उत्पन्न करें तो ऐसे व्यक्तियों के साथ क्या करना चाहिए, इसे राजमहल जानता है। इसलिए यहाँ जितने श्रीवैष्णव एकत्र हुए हैं, जरूरत हो तो सभी विचार-विनिमय कर हमें बता दें। हम बाद में निर्णय लेंगे।"
___ चाविमय्या पास आया और बोला, "वह गुप्तचर मिल गया है। आज्ञा हो तो बुला लाऊँ?"
"बुला लाओ उसे।"
सवीग में तिलक लगाये केशवाचार्य को दो अंगरक्षक सैनिक बुला लाये, और सभा के समक्ष पेश किया।
"कौन हो तुम?" ब्रिट्टिदेव ने पूछा। "केशवाचार्य।" "कहाँ के हो?" "किक्केरी का।" "झूठ।' "चलो, न सही, पर कम से कम मेरे इस तिलक का तो सम्मान रखा जाए?" "सम्मान चाहने वाले यहाँ से खिसके क्यों?" "मैं कहाँ खिसक गया?" "अन्दर क्यों नहीं आये थे?" ।'आया था।" "तो बैंटे क्यों नहीं रहे?" "बैठा तो था।" "फिर चले क्यों गये?"
"पेट में एकाएक गड़बड़ी शुरू हो गयी। उससे निपटकर आने के इरादे से चला गया।
"कल रात तुमने किस जानवर का मांस खाया था?" "आँ...मैं...मांस..." "हाँ, वही मांस अब पेट में गड़बड़ कर रहा है।" "मैं वैदिक, श्रीवैष्णव...!" "मत कहो ऐसा। जो सच्चे श्रीवैष्णव हैं, उनके नाम पर कलंक लगेगा।" "इस श्रीनिवास ने या उस तिरुवरंगदास ने मेरी शिकायत की होगी।" "चाविमय्या, इसके दोनों हाथ पीछे की ओर कसकर बंधवा दो।" अंगरक्षकों ने वहीं किया।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 19