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________________ कर भागे आचार्य और उनके शिष्य एक साथ हमारे हाथ में पड़ जाएंगे। हमारी चम्पा मिलनसार है, सबसे नि:संकोच मिल-जुलकर रहेगी। उसका ख्याल रखिए। आप कार्यारम्भ करते ही सूचित कर देंगे तो यहाँ दोनों धर्मावलम्बी टोलियों को भिड़ाकर मैं आपके साथ शामिल हो जाऊँगा–बी. शे.।" "शेष पत्र?" "ये पत्र समय-समय पर इसके पास भेजे गये आदेश हैं।" मायण ने कहा। "किसके आदेश?" "किसके आदेश, यह तो कहा नहीं जा सकता, क्योंकि उन पर संकेत मुद्राएँ हैं और सभी मुहरें एक-सी नहीं हैं।" "विषय क्या है ? "एकता को तोड़ने के लिए क्या-क्या करना चाहिए और क्या सहायता चाहिए आदि के बारे में, सहायता करने आये व्यक्तियों के द्वारा भेजी गयी छोटी-छोटी बातें इनमें हैं।" "इस सभा के सामने पेश करने लायक और कोई मुख्य बात?" "है। अनुमति हो तो पढ़ें ?" "पढ़ो!" "लिखा है-'अभी महाराज ने जो शादी की. उस नयी रानी के माता-पिता कौन हैं सो मालूम नहीं, यह बात सुनने में आयी। ऐसी अनाथ लड़की से शादी करनेवाला राजा भला कौन-सी भव्य परम्परा स्थापित करने जा रहा है ? वह भी ऐसी ही है । किसी के भी हाथ आ जाएगी। किसी तरह से उसके मन में यह विष-बीज बो दो । उसे ऐसा पद मिला है जो उस जैसी स्त्री के लिए दुर्लभ है। सुख में मस्त हो, कामलीला में जैसा नचावें नाचनेवाली होगी वह। परन्तु इस विषय में बहुत सतर्क रहना होगा।" "यह पत्र किसकी तरफ से है, जान सकते हैं ?" "इस पर वृषभमुद्रा है।" "पल्लवों की वृषभमुद्रा है।" "द्वेष करने के लिए वहाँ अब कौन है ? हमारी रानी बम्पलदेवी पल्लवकुल की ही हैं न?" शान्तलदेवी ने सवाल किया। "रानी राजलदेवी इस दृष्टि से तो चालुक्य-कुल की हैं न?'' बिट्टिदेव ने प्रश्न किया। ___ "ये मुद्राएँ ही कृतक हैं। इसका रहस्य केवल यह शेट्टी जानता है। चाहे जो हो, इतना समझ लें तो काफी है कि ये सब पत्र हमारे शत्रुओं की तरफ से आये हैं।" चाविमय्या बीच में ही बोल उठा। "एक पत्र और है। इस पत्र में नीचे त्रिनामतिलक का चिह्न है। उसमें जो लिखा पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 151
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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