SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'तलघर में... तलघर में... हम मित्र यों ही मिला करते थे।" 11 'सो तो ठोक है। जब मिलते तब करते क्या थे?" Ld 14 'शेट्टीजी शराब मँगवाते । मस्त होने तक हम पीने बाद को... बाद को... शेट्टी हमारे राख का भी इतना देते। - "तुम लोगों के लिए शयन सुख की व्यवस्था करने के लिए क्या शेट्टी व्याकुल रहते थे ?" 'ओफ, वह हमारी अपनी बातें हैं। यहाँ इस राजमहल में इन बातों की चर्चा 44 क्यों ?" 44 अगर वह सच्च ही तुम्हारी अपनी बात होती तो हम तुम लोगों को यहाँ बुलवाते ही नहीं। चुपचाप जो बात है सो बता दो।" 'कह दिया न ? और क्या कहूँ ? शयन-सुख कैसा रहा, किस-किस के साथ सुखानुभव हुआ, आदि-आदि बताना होगा ?" 44 'बेहया ही यह सब कहेगा। और ऐसे ही लोग यह सब पूछेंगे। यहाँ यह बात नहीं करनी है। यहाँ केवल सत्य चाहिए।" " "सत्य हो तो कहा । " "ऐ तिलकधारी ! तुम बताओ, ये लोग क्या करते थे ?" तिलकधारी ने कुछ हीला हवाला किया। " तुमने इन लोगों के साथ शराब पीकर शयन-सुख का अनुभव किया ?" बात सुन तिलकधारी जोर से हँस पड़ा। 11 'क्यों ऐसा हँसते हो ?" "हँयूँ नहीं तो क्या करूँ ? वहाँ शराब नहीं थी. शयन- सुख भी नहीं। " " तो वहाँ क्यों इकट्ठे होते थे ?" " षड्यन्त्र रचने। यह चन्दुगी जैन है। इसके साथ जो लोग रहते थे वे सभी जैन थे। इन सबको संगठित करके इन त्रिनामधारियों पर धात्रा करवाने का षड्यन्त्र रचा जाता था। यह बताया जा रहा था कि अहिंसा तत्त्व से पुनीत जैनधर्म इन श्रीवैष्णवों के कारण अपमानित होता जा रहा है। वह वैष्णव मत अब इस राज्य में कैंटीली बेल की तरह मनमाने ढंग से फैलता जा रहा है। जहाँ देखो, वहीं ये त्रिनामधारी दिख रहे हैं। इन्हें यों बढ़ने दें तो फिर ये हमको हो यहाँ से भगा देंगे। इसलिए इनको जब तक नहीं भगाएँगे, तब तक जैनियों की खैर नहीं। इसलिए इन्हें भगाने के लिए कुछ नया उपाय ढूँढ़ना होगा। एक उपाय किया सो वह सफल नहीं हुआ। उन आचार्य के पास खबर भेजी गयी कि वे यदि तिरुमलाई से लौटे तो उन्हें अपने प्राण खोने पड़ेंगे। फिर भी वे लौटकर यहीं आये। इसलिए अब उन आचार्य और उनके शिष्यों को भगाने के लिए कोई न कोई प्रबल उपाय करना होगा, आदि-आदि बातों पर चर्चा की।" उस पट्टमहादेवी शान्तला भाग यार : 145
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy