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________________ "हाँ, वह मेरे मालिक के पास नौकरानी थी।" "तुम्हारी जैसी नौकरी?" "न-न, बेचारी! हमारी जैसी नौकरी के लिए वह बिलकुल अनुपयुक्त है। हमारे मालिक का उस पर अनुराग था। किसी तरह से मनाना चाहते थे।" "इसके लिए तुपने सहयोग दिया?'। "एक तरह से हां, पर हमने मान लेने को नहीं कहा।" "हम कहती हो, इसके माने?" "हम छह जनी हैं। अलग-अलग स्थानों से आयी हैं।" "अलग-अलग स्थानों से, यानी?" "कल्याण से, मान्यखेर से, धारानगरी से, देवगिरि और वनवासी से।" "एक तरह से सहयोग दिया, कहा न? क्या किया करती थी?" "मालिक के आदेश के अनुसार, जिसे सुख देने को कहते, देती थी। वे जिस धर्म के अनुयायी होते, उसी को हम श्रेष्ठ कहते।" । "ऐसा कहने-करने के लिए तुम्हें आदेश दिया गया था?" "सख देने के हमारे कार्य सं मालिक के काम में मदद मिल जाता थी। अपने धर्म की प्रशंसा करते तो हमें भी वहीं धर्मप्रिय है कहती, तो वे खुशी से फूल उठते । उन्हें खुश करने के लिए वह एक नियमित सूत्र था, इसलिए हम ऐसा करती थीं। किस-किस के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसे हमें मालिक ने सिखाया नहीं था।" "क्या तुम लोगों को ऐसा नहीं लगा कि यह सब करना गलत है?" "मेरे मालिक का काम । जो कहें उसे कर्तव्य मानकर करना। इसमें हमें कोई खास गलत बात नहीं दिखाई दी।" "धर्म को बात इस अधर्मगोष्ठी में क्यों?" "पुरुष को अपने वश में करना हो तो वह कुरूप हो तब भी उसे कामदेव कहना पड़ता है। बढ़ाने-चढ़ाने के लिए जो बात कही जाए, उसका मूल्यांकन नहीं किया जाता।" "जाने दो। तुम्हारे मालिक का क्या काम है?" "जवाहरात के व्यापारी हैं।" "उस व्यापार का इस चण्डाल-चौकड़ी से क्या सम्बन्ध है?" "मुझे क्या मालूम? जो आते थे वे बहुत धनी होते थे या फिर ऊँचे स्तर के अधिकारी होते थे। उनके खुश होने से शायद मालिक का व्यापार अधिक बढ़ जाता होगा।" "इस व्यापार के बढ़ने का रानी लक्ष्मीदेवी के पट्टमहादेवी बनने की बात से क्या पट्टमहादेवी शान्तला : भाग भार :; 143
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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