SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "कुछ मालूम हुआ?" "अभी हाल में एक आश्चर्यजनक बात उनके मुँह से निकली थी।" कहती हुई रुकी और लक्ष्मीदेवी की ओर देखा। "अभी हाल में, का मतलब?" "यही शेट्टी बोलते थे न, कि यहाँ की स्थिति बदल जाएगी, उसके बाद।" "वह क्या?" "जल्दी ही रानी लक्ष्मीदेवीजी पट्टमहादेवी बन जाएगी, तब हमारे लिए स्वर्ण अवसर आएगा, ऐसा कहा करती थीं ?" "सच है?" "मुझे अपनी सौगाप, सच है।" "तुमने उनकी बात पर विश्वास कर लिया?" "मैं चकित रह गयी। दम घुटने-सा लगा।" वास्तव में एक तरह से उस वक्त सारी सभा में लोगों का दम घुटने का-सा वातावरण था।सबने प्रश्नार्थक दृष्टि से देखा। बिट्टिदेव ने तिरुवरंगदास की ओर चूभती नजर से देखा। तिरुवरंगदास का चेहरा फक होकर सफेद पड़ गया था। रानी लक्ष्मीदेवी के मानो प्राण निकले जा रहे थे। "इस लालच की कोई तुलना ही नहीं।" बिट्टिदेव ने कहा। वह क्रोध से भर उठे थे। दाँत पीसने लगे। शान्तलदेवी ने बिट्टिदेव के कान में कहा, "हम सत्य को प्रकट कराने की कोशिश कर रहे हैं। ये सब हवा की लहर मात्र है। इस तरह लहर को चलाने वाले कौन हैं, यह जानना चाहिए। इसलिए इस तहकीकात के बीच मौन और संयम बरतना अच्छा है।" 'सारी दुनिया ही तुम पर टूट पड़े तब भी तुम हँसती रहती हो। यह सब षड्यन्त्र तुम्हारे खिलाफ ही चल रहा है' बिट्टिदेव कहना चाहते थे। उन्होंने शान्तला की ओर देखा। उन्होंने मुस्कराकर चुप रहने की सूचना आँखों ही आँखों में दी। वह चुप रहे. एक क्षण भर । फिर कुछ सोचकर बोले, "इसका उत्तर, शेट्टीजी?" "अपनी देह के व्यापार से जीनेवाली औरतों की बातों को महत्त्व देते जाएं तो किस्सा ही खतम।" वीरशेट्टी तिरस्कार का भाव प्रकट करते हुए बोला। "किसका किस्सा?" "किसी का नहीं, न्याय का।" "तो ये सभी स्त्रियाँ, आपकी राय में, देह का व्यापार करनेवाली हैं?" "वह तो स्पष्ट ही है।" "किसके साथ किया ऐसा?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 141
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy