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________________ दोमुखी बनने में काफी समय लगा है। वर्षों से अन्दर-ही- अन्दर गुप्त रीति से कार्य संचालित होता आया है। लेकिन षड्यन्त्र के विस्फोट होने से पूर्व ही वह प्रकट हो गया यह राष्ट्र-हित की दृष्टि से अच्छा समझना चाहिए । इस सम्बन्ध में मेरे बताने की बजाय हमारी संरक्षकता में रहनेवाले उन लोगों को स्वयं पेश करना ठीक होगा इसलिए उनमें से कुछ लोगों को यहाँ बुला लाये हैं। हमसे सुनने से बेहतर होगा कि उन्हीं के मुँह से सुनें। सन्निधान, पट्टमहादेवीजी अथवा आचार्यजी जिनकी कल्पना भी नहीं कर सकते, ऐसे लोगों को भी यदि इस सभा के समक्ष प्रस्तुत करत असयचयित , हों। पहले उस बेल्लिय बीरशेट्टी को बुलाया जाए।" दो सिपाहियों के संरक्षण में वह बेल्लिय बीरशेट्टी वहाँ आया। दोरसमुद्र के अनेक लोग इस शेट्टी से परिचित नहीं थे। मगर नागिदेवण्णा, महाराज, पट्टमहादेवीजी, श्री आचार्यजी आदि प्रमुख जन उसे जानते थे। इसलिए उन सबको आश्चर्य हुआ। बीरशेट्टी सिर झुकाये खड़ा था। "बीरशेट्टीजी, हमने समझा था कि आप राजमहल के विश्वस्त जवाहरात के व्यापारी एवं निष्ठावान् प्रजा-जन हैं। आपको इस तरह यहाँ उपस्थित देख हमें आश्चर्य होता है। अच्छा चाविमय्या, इन्होंने क्या किया?" बिट्टदेव ने पूछा। चाविमय्या ने कहा, "चट्टलदेवीजी निवेदन करें।" चट्टलदेवी आगे आयी । प्रणाम किया और बोली, "जन्मजात गुण जलने पर भी नहीं जाते, यह लोकोक्ति है। इस बीरशेट्टी के सारे गण पैतृक हैं। या यह कहना बेहतर होगा कि ये गुण इसके भाई के हैं, हैं न शेट्टीजी?" चट्टलदेवी ने पूछा। "इनके भाई कौन हैं?" "शायद सन्निधान को मालूम नहीं। पट्टमहादेवीजी जानती हैं।" बिट्टिदेव ने पट्टमहादेवी की ओर देखा। उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया। "पहचान नहीं सकी, इस शेट्टी का भाई कौन है!" शान्तलदेवी ने ही पूछा। "परमारों का गुप्तचर रतनव्यास।" चट्टला ने कहा। "झूठ, सब झूठ है। परमारों के साथ मेरा कोई सम्बन्ध नहीं। जैसा सन्निधान ने कहा, मैं राजमहल का विश्वस्त जवाहरात का व्यापारी हूँ।" बीरशेट्टी ने कहा, परन्तु उसकी आवाज में घबराहट थी। "इसका चेहरा उसके चेहरे से मिलता-जुलता है। नाक-नक्श सब उसी रतन व्यास का है।'' शान्तलदेवी ने कहा। "रतनव्यास कौन है ?" बिट्टिदेव ने शान्तलदेवी से पूछा। "चालुक्य पिरियरसी चन्दलदेवीजी जब बलिपुर में हमारे यहाँ धरोहर के रूप में रहीं, तब धारानगरी के हमले के प्रसंग में...।" "ओह ! प्रभु के सान्निध्य ही में उसे दण्डित किया गया था न? अब याद आया। पट्टमहादेवी शान्तला ; भाग चार :: 135
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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