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________________ अपेक्षा नहीं की थी। कुछ हड़बड़ो हो में वे दोनों यदुगिरि पहुंचे। शंकर दण्डनाथ और तिरुवरंगदास के यदुगिरि पहुँचने के दूसरे ही दिन आचार्यश्री के साथ राज-परिवार वेलापुरी की ओर रवाना हो गया। नागिदेवण्णा और उनका परिवार, डाकरस दण्डनाथ और उनका परिवार, सभी इस यात्रा में सम्मिलित थे। एम्बार अकेले यदुगिरि में ठहरा रहा; क्योंकि उसे आचार्यजी ने आदेश दिया था कि दिल्ली से लाये गये चेलुवनारायण की पूजा यहीं करेगा। अच्चान तो उनका अंगरक्षक ही था। वह भी साथ रहा। पर अब उसके सिर के बाल कुछ-कुछ पक आये थे। माल पर और दाढ़ी में भी यत्र-तत्र सफेद बाल दिखने लगे थे। उसका पहलवान जैसा बलिष्ठ शरीर कुछ ढीला-ढाला-सा दिखने लगा था। फिर भी उसमें उत्साह की कमी नहीं थी। राजपरिवार के वेलापुरी आने की खबर पहले ही दी जा चुकी थी। आचार्यश्री का प्रथम स्वागत दोरसमुद्र में हो, इस इरादे से पट्टमहादेवी वहीं गी थीं। वलापुरी में स्वागत की व्यवस्था का सारा दायित्व बम्मलदेवी को सौंपा गया था। वास्तव में विजयोत्सव वेलापुरी में ही होनेवाला था। इसलिए गंगराज, पुनीसमय्या आदि सचिवमण्डली, दण्डनायक समूह, सब वेलापुरी में ही रहे । दोरसमुद्र में पट्टमहादेवी की मदद के लिए गंगराज के पुत्र बोष्ण दण्डनाथ थे। समय कम था, अतः उतने समय में ही दोरसमुद्र में काफी भव्य व्यवस्था की गयी। नगरद्वार पर पट्टमहादेवी ने आचार्यजी का स्वागत किया। राजमहल और गुरुमट के अनुरूप सम्पूर्ण गौरव के साथ यह स्वागत-समारम्भ विशेष आकर्षक रहा। राजवैभव की विशालता और आचार्य-पीठ का गाम्भीर्य--इन दोनों का समन्वय देख दोरसमुद्र की जनता बहुत आनन्दित हुई। अच्चान को दोरसमुद्र के वैभव ने चकित कर दिया था। आचार्यश्री पोयसल राज्य में नये-नये जब आये थे तब यादवपुरी में जिस तरह का जुलूस निकला था, उसकी याद हो आयी। उस दिन भी वह साथ था। आज भी साथ है। वह यह सोचकर खुशी से फूल उठा-काश, आज आचार्यजी के गुरु होते और वह यह सब देखते तो कितने खुश हुए होते! राजमहल में पहुँचकर कुछ देर आराम कर लेने के बाद, केतमल्लजी को महाराज के सन्दर्शन के लिए ले जाया गया। केतमल्ल ने आकर प्रणाम किया और कुशल-क्षेम पूछने के बाद कहा, "मेरी एक छोटी-सी विनती है।'' "क्या है?" बिट्टिदेव ने पूछा। "पट्टमहादेवीजी से निवेदन किया था..." इतना कहकर केतमल्ल चुप हो गये। "उन्होंने हमसे कुछ नहीं कहा!" 108:: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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