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________________ - - - -- - .... - .. . . "यह मैं देख लूँगा। अभी मैंने उसके मन में एक हलचल मचा रखी है। जल्दी ही उसका परिणाम सामने आएगा।" तिरुवरंगदास ने आश्वासन दिया। "ऐसा! क्या किया है ?" "अभी से चिन्ता क्यों ? समय आने पर बताऊंगा।" "बिजोत्सव में जातं ती अच्छा होता न "उस उत्सव को न देखें तो नुकसान भी क्या है ? हजारों आदमियों का रक्त बहाकर जो विजय प्राप्त की गयी, उसे मानो अकेले उन्होंने पाया-यों एक व्यक्ति को प्रशंसा होगी। क्या वह कोई भगवान हैं ? अथवा किसी धर्म का प्रवर्तन करनेवाले संन्यासी या किसी धर्मपीठ के अधिपति हैं ?" "इस तरह कहेंगे तो कैसे होगा, धर्मदर्शाजी ? जबकि आर्योक्ति प्रसिद्ध है 'राजा प्रत्यक्ष-देवता'।" "वह सब आर्यों के जमाने की बात थी। अब के राजाओं की हालत हप नहीं जानते? राजेन्द्र चोल ने क्या किया?" "क्या किया?" "कहा कि शिव ही सबसे बड़े हैं और अन्य देवों की पूजा करनेवाले विधपी हैं। उसने क्या निर्णय किया था, मालूम हैं ?'' "किस विषय में?" "यही, हमारे आचार्यजी के बारे में।। "क्या निर्णय किया था?" "उनकी आँखें निकलवाने का निर्णय किया था।" "उन्होंने क्या अन्याय किया?" "और कछ नहीं. नारायण को अपना आराध्य माना और श्रेष्ठ कहा।" 'अब भी तो वहीं कहते हैं, हमें और आपको उनकी बातों पर विश्वास है। उनके आदेश के अनुसार हम चलते हैं। तब राजेन्द्र चोल को इसमें कौन-सी हानि दिखाई पड़ी?" "आचार्यजी से बहस में जीत न मके, इसलिए आँखें निकलवाने की बात कह कर डराया। आचार्य ने सोचा कि ऐसे पागल का साथ देना अच्छा नहीं, इसलिए यहाँ कन्नड़ राज्य में भाग आग्ने आश्रय पाने।" ।'ऐसा है? मुझे तो यह बात मालूम ही नहीं थी!'' 'केवल इतना ही नहीं, आचार्य को बचाया किसने, जानते हो?'' "मुझे क्या मालूप? आप ही बताइए।'' "मैंने ही बचाया। उनकी सब तरह से सुरक्षा की व्यवस्था करके, दिन के वक्त छिपाये रखकर, रात के वक्त एक स्थान से दूसरे स्थान में पहुँचाकर, धीरे-धीरे उन्हें . . 106 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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