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________________ बिट्टिदेव ने युद्ध में जाने का निर्णय किया। "मैं भी चलूंगी।" शान्तलदेवी ने कहा। क्यों? यह युद्ध ऐसा कोई बृहत प्रमाण का न होगा। हम यों ही अपनी तृप्ति के लिए हो आएँगे।" बिट्टिदेव बोले। "मैं एक निर्णय पर पहुंच चुकी हूँ। युद्ध चाहे किसी तरह या प्रकार का क्यों मही, सन्निधान के साथ मुझे या बम्मलादेवी का रहना ही चाहिए। वे तो अब यहाँ पास नहीं हैं। वहाँ खबर भेजकर उन्हें बुलवा लेना उचित है तो वही कर सकते हैं। नहीं तो मैं ही चलेंगी।" | __ "पट्टमहादेवी का यह निर्णय अपने लिए है या अपनी प्रिय शिष्या चट्टलदेवी के लिए है?" "वह इस बार आ नहीं सकेगी। उसे सातवाँ महीना लग रहा है। इसलिए सन्निधान को अल्दी निर्णय सुना देना होगा।" "तुम्हारी इच्छा। बच्चे...?" "उनको वेलापुरी में रखेंगे।" "अभी हाल में विवाहित कुमार बिट्टियण्णा युद्ध में चलने के लिए हठ करे तो कैसा करेंगे? तुम चलोगी तो वह निश्चित रूप से हठ करेगा और साथ चलेगा।" "तो एक काम करें। मेचि दण्डनाथ और बम्पलदेवी जी को शीघ्र खबर भेज दें कि वे सोसेऊरू आकर वहां से सन्निधान के साथ हो लें।" "रेविमय्या यों जल्दी में यात्रा नहीं कर सकेगा।" "वह न जाए। यों तो मायण इस बार पत्नी को छोड़कर नहीं जा पाएगा। कमसे-कम यह काम किया जा सकता है कि राजलदेवी मायण के साथ यहाँ आ जाएँ।" "ठीक है। ऐसा ही निर्णय किया गया और शान्तलदेवी यादवपुरी ही में ठहर गयीं। मायण पत्र लेकर मंचि दण्डनाथ के यहाँ गया। स्वयं बिट्टिदेव सिंगिमय्या को भी साथ लेकर वेलापुरी से न होकर उसके पश्चिमी तरफ के पहाड़ी जंगली प्रदेशों से होकर, यादवपुरी की एक चौथाई सेना समेत सोसेऊरू जा पहुंचे। तब तक उधर बाणऊरु वसुधारा के रास्ते से होकर मंचि दण्डनाथ और बम्मलदेवी अपनी सेना का आधा हिस्सा साथ लेकर सोसेऊरू पहुँच चुके थे। बाद में, पूरी सेना कोट्टिमेहार से होकर तलहटी में पहुँच गयी। सेट्टिगौडा के सहयोग से डाकरस दण्डनाथ अपना एक प्रबल थाना वहाँ बना बैठा था। बिट्टिदेव जैसे ही वहाँ पहुँचे, कुमार बिट्टियण्णा और उदयादित्य को देखकर चकित हो गये। बिट्टिदेव को यह अच्छा नहीं लगा। "हाल में विवाहित लड़के को युद्धक्षेत्र में ले आये! कुछ तो सोचना चाहिए था।" उन्होंने डाकरस से कहा। डाकरस के बदले उदयादित्य ने ही जवाब दिया, "सन्निधान स्वयं विवाह पट्टपहादेत्री शान्तला : भाग तीन :: 31
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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