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________________ बैठने का आदेश देकर शान्तलदेवी भी बैठ गयीं। "आप जिस बात को लेकर आये हैं सो मालूम हो गया। महामातृश्री ने मुझे एक आदेश दिया था। यह कि 'अमात्य पेचिमय्या के घर में एक लड़की है। मन्त्री नागदेवजी के यहां भी एक लड़की है। ये दानों लड़कियों पिहीना है। परिवार इन दोनों बच्चियों को योग्य स्थान पर पहुँचाएँ; इन दोनों में एक को हमारे बिट्टिगा के लिए स्वीकार करें। उस दायित्व को तुम पर छोड़ देती हूँ।' इधर मैंने आपकी बहन या पेचिमय्याजी की पुत्री को देखा नहीं है। जब देखा था तब छोटी थी। अब बढ़कर हष्ट-पुष्ट हो गयी होगी। एक बार देख लेना अच्छा है न?" शान्तलदेवी ने कहा। "आज्ञा हो तो अभी बुला लाऊँ?" धरणेन्द्र बोले। "दोनों बच्चियों को देखेंगे। दोनों में जो बिट्टिगा के लिए ठीक जंचे, उसे जानकर ही निर्णय करेंगे। बिट्रिगा के साथ वरसाम्य की दृष्टि से अमात्य की बेटी ठीक बैठेगी तो आपको असन्तुष्ट नहीं होना चाहिए।" शान्तलदेवी बोली। "हम हर बात मैं राजपरिवार के निर्णय के अनुगत हैं। महामातृश्री तो सबकी अपने ही बच्चों की तरह देखभाल करती थीं। उन्होंने जैसा कहा है वैसा चलने में ही हमारा श्रेय है। मेरी बहन के विषय में भी राज-परिवार का ख्याल है, यही हमारे लिए भाग्य की बात है। कहें तो सुब्बला को बुलवा लें?" "आज नहीं। आनेवाली तीज को हमारे कुमार की वर्धन्ती है । उस दिन कहला भेजूंगी, हल्दी-कुंकुम और भोजन के लिए।" शान्तलदेवी ने बताया। "जो आज्ञा।" धरणेन्द्र ने कहा। बात समाप्त हुई। कुछ ठहरकर धरणेन्द्र उठ खड़ा हुआ, "आज्ञा हो तो..." हाथ जोड़े। "अच्छा, आप जा सकते हैं।" राजदम्पती ने कहा। धरणेन्द्र चले गये। रेविमय्या ने बाहर जाकर परदा खींच दिया। "पट्टमहादेवी ने आज इस तरह निश्चित ढंग से स्पष्ट बात कह दी, क्यों? कभी यों बात करते हमने देखा न था। अच्छा, दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी, क्या बात थी?11 बिट्टिदेव ने प्रश्न किया। "व्यर्थ की उम्मीद बनी रहे ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। खासकर विवाहों के विषय में स्पष्ट बात कह देना चाहिए। कौन जाने, बिष्टिगा के साथ कौन विवाह करेगी।" ___ "वही, जैसी हमारी हुई।" ''हाँ तो? समय बीतने के साथ-साथ उदासीन होते जाने की हालत। पुरुष जाति ही ऐसी है। भौरे जैसी। एक फूल से उसे तृप्ति कहाँ?" "ठीक, अब हमें मालूम हो गया। एक समय मायण को भी ऐसा ही पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 67
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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