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________________ बिट्टिदेव ने कहा, "उस समय की सारी व्यवस्था बहुत ही अच्छी हुई थी। अब तो दुगुनी व्यवस्था करनी पड़ेगी। बड़े दण्डनायकजी ने बहुत ही अच्छा इन्तजाम किया था। अब भी वह हमारी आँखों के सामने चित्रित-सा दिखता गंगाल बोले, "हनोंने अपने सोशुमो- गुनों जी र. के लिए दान किया है। यह कार्य उन्हीं दोनों को सौंप देंगे तो हमें कुछ सोच-विचार करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। परन्तु खर्च के विषय में तो सोचा ही पड़ेगा।" शान्तलदेवी ने कहा, "सभी पटवारियों और हेगड़े जनों के पास पत्र भेजें। इस शताब्दी उत्सव के सन्दर्भ में राष्ट्रोत्थान-निधि का संग्रह किया जाए। काफी संग्रह हो जाएगा। इस वर्ष फसल अच्छी है। गाँव-गाँव के राजादाय के धान्यभण्डारों से आधा हिस्सा धान्य राजधानी में मंगवा लें। मेले में आनेवाले सभी को ठहरने और खान-पान आदि किसी चीज की कमी न हो।" मावण दण्डनाथ बोले, "सन्निधान और पट्टमहादेवी अभी से दोरसमुद्र में ही मुकाम करेंगे तो अच्छा होगा।" "यादवपुरी आकर जितनी जल्दी हो वहां पहुंच जाएंगे।"शान्सलदेवी ने कहा। विट्टिदेव ने शान्तलदेवी की ओर देखा। वह पूछना चाहते थे कि यादवपुरी क्यों जाना चाहिए। मगर पूछा नहीं। शान्तलदेवी का ध्यान उनकी ओर गया, बोली, "एक यात्रा पर निकले हैं। इस यात्रा का उद्देश्य पूरा हो जाए तन्त्र जहाँ से रवाना हुए वहाँ पहुँचकर अनन्तर दूसरे उद्देश्य के लिए रवाना होना चाहिए। यही क्रमागत परिपाटी है। अलावा इसके, वहाँ बच्चों को छोड़ आये हैं। राष्ट्र के शतमानोत्सव के सन्दर्भ में उन्हें भी उसमें भाग लेना चाहिए न? उदयादित्य अरसजी तो वहीं हैं। सम्पूर्ण राज-परिवार को एक अच्छे मुहूर्त में एक साथ शतमानोत्सव के लिए रवाना होना उचित है। हम सब अल्दी वहाँ आ जाएँगे। तैयारियाँ अभी से शुरू हो जाएँ." कहकर शान्तलदेवी ने मन्त्रणासभा के समापन की सूचना की। "ठीक है। अब सभा विसर्जन करें। आगे के सारे कार्यक्रम प्रधान गंगराज के नेतृत्व में चलेंगे," बिट्टिदेव ने कहा। __"सन्निधान के राजधानी में पहुँचने तक इस तरह चलेगा। बाद में सीधे सन्निधान को ही देखरेख में चलेगा।" कहकर गंगराज उठ खड़े हुए। बाकी लोग भी उठ खड़े हुए। परस्पर वन्दन-प्रतिवन्दन के बाद सभा विसर्जित हुई। दूसरे दिन राजपरिवार ने यादवपुरी की ओर तथा शेष सभी ने दोरसमुद्र की ओर प्रस्थान किया। 62 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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