SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसलिए कहे देता हूँ। यह राजमहल नहीं, भगवान् का मन्दिर है। अतः जो मैं जानता हूँ उसे निवेदन कर रहा हूँ। जो कुछ मैं जानता हूँ वह सब पट्टमहादेवीजी भी शायद जानती होंगी। विस्तार से नहीं, तो भी पर्यायान्तर से जानती ही होंगी। महामातृश्री अपने मन की बात पट्टमहादेवी से कहे बिना नहीं रहती थीं। अतः मैं जो कहना चाहता हूँ वह उनके लिए नयी बात नहीं होगी।" "छिः छिः, मेरे मन में जो सन्दिग्ध हैं वह महामातृश्री तक पहुँच ही नहीं सकता। इसलिए तुम्हारे मन में जो बात उठी हैं उसका मेरे मन की सन्दिग्धता से कोई सम्बन्ध हो ही नहीं सकता- ऐसा ही मैं मानता हूँ।" मंचिअरस ने कहा । " सम्बन्ध न हो तो सन्दिग्धता ही नहीं रहेगी न ? अनुमति दें तो कहूँगा, मना करेंगे तो नहीं कहूँगा ।" रेविमय्या ने कहा । "रेविमय्या ! मुझे सब कुछ मालूम है। महामातृश्री के मन में क्यों गड़बड़ी पैदा हो गयी, उसे वश में लाने के लिए उन्होंने क्या सब किया, चहला से क्या-क्या बातें जान सकीं, हमारी माताजी से क्या-क्या बातें कीं आदि सभी मुझे मालूम है। मंचि दण्डनाथजी के मन को धीरज बंधाने के लिए बाहुबली स्वामी के समक्ष आश्वासन दूँगी। मैं दूसरों की आशा-आकांक्षाओं के लिए बाधक नहीं हूँगी। मगर एक बात स्मरण रहे, समझ रखें कि कुछ भी हो - उसके पीछे जबरदस्ती न हो, किसी तरह का बिरोध न रहे।" बिट्टिदेव को ये बातें पहेली की तरह लगीं। कुछ तमाशा-सा भी लगा । बीच मैं कुछ बोलने का इरादा भी हुआ, मगर चुप रहे। बोले नहीं। " तो कुछ कहना नहीं चाहिए न ?" रेविमय्या बोला । "अपने-अपने सम्बन्ध में जिन्हें जो कहना हो वे खुद ही कहें तो बात की गहराई और उसका औचित्य कितना है आदि बातें मालूम पड़ेंगी। दूसरों के कहने पर बहुतांश कहनेवालों की कल्पना भी हो सकती है। इसलिए जब उनमें कह सकने का धीरज हो तभी कहें। उन पर जोर-जबरदस्ती न हो।" " सम्बन्धित सभी मौजूद रहें तभी कहना अच्छा होगा। कोई ऐसा न समझे कि हमारे पीठ पीछे कुछ हो गया है।" मंचि दण्डनाथ बोले । " तो मतलब हुआ कि राजकुमारियों भी मौजूद रहें। यही आपकी राय हुई । " 11 'बात उनसे सम्बन्धित है इसलिए उन्हीं के सामने कहना अच्छा है ।" "वही कीजिए। क्यों रेविमय्या, आज बाहुबली ने तुम्हें किस रूप में दर्शन दिया ? कर्णकुण्डल, गदा-पद्म, हस्त, किरीटधारी होकर पीताम्बर धारण किये दर्शन दिया ? या अपने फालनेत्र से तुम्हारे हृदय में ज्योति किरणें फेंक ?" "उस समय छोटे अप्पाजी और अम्माजी के लिए प्रार्थना करने का कुतूहल था। बाहुबली का दर्शन चाहा। उन्होंने कृपा की। अब मेरे लिए कुछ नहीं चाहिए । पट्टमहादेश्री शान्तला भाग तीन : 59
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy