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________________ करने का नियम रखा है। इसलिए किसी भी तरह की च्युति रहे उसे मन्त्र-जप से निवारण कर कार्य आगे बढ़ाने का अवसर जब है, तब इस वाद-विवाद को यहीं समाप्त कर नियोजित रीति से कार्य को आगे बढ़ाने की सोचें। आचार्यजी ने यहां आगमशास्त्र निष्णात पण्डितों को भेजा है। उनकी राय भी मेरी राय के अनुसार हो तो आगे काम में लग जाएँ। यह स्पर्धा, ऊँच-नीच, सही-गलत यह सब इस समय नहीं चाहिए। एक पवित्र कार्य को सम्पन्न करते समय ईर्ष्या-द्वेष के लिए कारण बननेवाली इस परीक्षा की आवश्यकता नहीं है।" शान्तलदेवी ने अपनी राय स्पष्ट कर दी। महाराज ने आगमशास्त्रियों की ओर देखा। उन शास्त्रियों में से एक बुजुर्ग उठ खड़े हुए और बोले, "पहासन्निधान के समक्ष हम सबकी ओर से मेरा इतना निवेदन है। अपवित्र को पवित्र बना सकने की मन्त्रशक्ति रखनेवाले, सब दोषों को मन्त्र द्वारा निवारण कर, शुद्ध करके प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। दोष है या नहीं इसका परिशीलन हम करेंगे ही नहीं। निर्दोष सिद्ध करने पर भी रहे -सहे अगोचर दोषों का निवारण मन्त्र की सहायता से दूर कर ही हम प्रतिष्ठा करते हैं। इसलिए पट्टमहादेवीजी ने जो कहा वह बहुत ही उपयुक्त है।" सभी धर्म अगोचर दोषों और त्रुटियों का प्रायश्चित्त विधान देकर ही कार्यों को आगे बढ़ाते है। महावीर स्वामी के जन्म के पूर्व देवलोक के देव ने आकर जन्मधारण करनेवाले उस गर्भाम्बुधि को शुद्ध किया था; यह हमने सुना है। इसलिए अब तैयार देवमूर्ति की प्रतिष्ठा के विषय में हमारी स्वीकृति है।" युवक उठ खड़ा हुआ। कुछ बोला नहीं। मौन ही उसने स्थपति, महाराज और पट्टमहादेवी की ओर देखा। शान्तलदेवी ने पूछा, "और कुछ कहना है ?" "यदि अनुमति दें तो।" "अनुमति दे सकते हैं, परन्तु उससे क्या लाभ?" "वह बाद में विचार करने का विषय है। फिलहाल एक और अवसर दीजिएगा।" "अच्छा कहो।" “पट्टमहादेवी ने इस बात को उदारता से लिया। आगम-शास्त्रियों ने अपने लिए अनुकूल मार्ग का अनुसरण किया।" "तो क्या, तुम यह व्याख्या करना चाहते हो कि हमने जो कहा, यह ठीक नहीं?" आगमशास्त्री ने कहा। "मेरे लिए अपने विचार प्रस्तुत करना मुख्य हैं। यदि वह दूसरों के विचारों की व्याख्या हो तो मैं उसका उत्तरदाता नहीं हूँ। आपने जो विधान बताया वह उस समय का है, जब दोष की जानकारी न हुई हो। परन्तु अब परिस्थिति ही भिन्न है।" 466 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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