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________________ मैं राजा-रानियों से रातचीत करने की रीति नहीं जानता। वे ही बता दें। खे सब जानते हैं।" युवक ने कहा। 'राजा-रानी भी तो मनुष्य ही हैं, बेटा! अपने माँ-पिता से बातचीत नहीं करोगे ? वैसे ही बातचीत कर सकते हो।" शान्तलदेवी ने कहा। युवक ने संकोच से कि झुका लिया। i "ठीक है, स्थपतिजी, आप ही बताइए।" शान्तलदेवी ने कहा । "खड़े-खड़े ही बातचीत हो रही है। पट्टमहादेवीजी, अरसजी, दण्डनायकजी बैठें तो..." स्थपति कहते-कहते रुक गये। तीनों जन जब बैठ गये तो स्थपति ने जो कुछ देखा - समझा था वह सब हू-ब-हू बता दिया। "इन्होंने जो कहा, वह सब ठीक है बेटा ?" सिर हिलाकर युवक ने अपनी स्वीकृति जतायी। " स्थपतिजी, यह बात मुझे पता लग गयी, यह अच्छा हुआ। उनका स्वभाव ही ऐसा है। कुछ ऐंठकर ही चलते हैं। उन्हें असन्तुष्ट न करके, विशेष बातों के लिए अवसर न देकर उनसे दूर रहना ही अच्छा है। यही बुद्धिमत्ता है। सब शिल्पियों को यह बात समझा दें।" "जो आज्ञा !" "हम जब यहाँ आये तो परीक्षण की बात सुनाई पड़ी। क्या बात है ? परीक्षण किसका ?" "इस केशव की मूर्ति के परीक्षण की बात थी।" "यह केवल केशव नहीं, यह चेन्नकेशव हैं। कितनी सुन्दर मूर्ति है। उसका क्या परीक्षण ? जब आपने स्वयं उसे सजीव रूप दिया है तो परीक्षा की बात क्यों ?" "परीक्षा उस दृष्टि से नहीं। शिल्पशास्त्र में प्रतिमा लक्षण स्पष्ट रूप से बताया है। उस उक्त लक्षण से भिन्न रूप में बनकर प्रतिष्ठित होने पर प्रतिष्ठित करनेवाले, 1 बनानेवाले, बनवानेवाले, प्रतिष्ठा करवानेवाले सभी की बुराई होगी। इसलिए यह मूर्ति उन सभी लक्षणों से युक्त है या नहीं, इसी दृष्टि से अपनी जानकारी की पुष्टि के लिए ही वह परीक्षा कर रहा था। " " आपकी क्या राय है?" "पूरा परीक्षण करके ही युक्त रीति से बनाया है।" "तब तो उसकी परीक्षा करने का साहस कौन शिल्पी कर सकेगा ?" शान्तलदेवी ने निर्णय सुना दिया। "फिर भी मनुष्य मनुष्य ही तो है ?" उदयादित्य ने कहा । " इसका अर्थ ?" शान्तलदेवी ने प्रश्न किया । " 'चलनेवाले का फिसलना सम्भव है- यह सामान्य तथ्य है न?" 454 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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