SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का समय लग गया। नियोजित रीति से कार्य चलने लगे। वेलापुरी जनसमूह से भर गयी। किसी को अवकाश नहीं। सभी हड़बड़ी में अपने-अपने कार्यों में लगे थे। वेलापुरी के निवासियों के घर सगे-सम्बन्धियों से भर गये। निवास, स्वास्थ्य, और आहार-इनकी व्यवस्था एक सपस्या ही बन गयी। परन्तु सब कार्यों को हँसीखुशी से एवं सन्तोष के साथ शान्तिपूर्ण ढंग से करनेवाले लोग पोयसल राज्य में थे। फिर भी यह सहज ही है कि भारी संख्या में लोग एकत्रित हों तो कुछन-कुछ असुविधाएँ होंगी ही, इसे लोग समझते भी थे। वे भी सहयोगपूर्ण व्यवहार कर रहे थे। घर-घर में उत्साह छलक रहा था। मंचि दण्डनाथ एक सप्ताह के अन्दर घोड़ों को खरीदकर ले आये। जम्भलदेवी के साथ रायण और सिंगिमय्या शिक्षण के कार्यक्रमों की ओर ध्यान देने लगे। रानी राजलदेवी, रानी लक्ष्मीदेवी, प्रधान गंगराज की पत्नी लक्कलदेवी, हेग्गड़ती माचिकव्ये आदि राजमहल में होनेवाले अन्यान्य कार्यों की व्यवस्था में लगीं। तलकाडु से लौटनेवाले माचण दण्डनाथ, दण्डनायक एचम, दण्डनायक बोप्पदेव, डाकरस दण्डनाथ, कुँवर बिट्टियण्णा, छोटे मरियाने-ये सब लोग उदयादित्यरस के नेतृत्व में होनेवाले कार्यकलापों में सहायक बने। पुनीसमय्या, प्रधान गंगराज और मारिसिंगय्या, व्यवस्था के कार्यों के सलाहकारों के रूप में लगे रहे। वयोवृद्ध होने के कारण अधिक परिश्रम के कार्यों में इन्हें लगने न दिया गया था। डाकरस दण्डनाथ का बेटा भरत राजमहल में राजकुमारों के साथ रहकर यहाँ के कार्यों में उत्साह दिखाने लगा। मायण गुप्तचर दल का प्रमुख होकर चाविमय्या के साथ अन्य राज्यों के गुप्तचर दल के लोग आये हैं या नहीं, आये हों तो उनके कार्य-कलाप क्या हैं, आदि बातों की तहकीकात करने में लगा रहा। वेलापुरी में शार्दूल लांछन फहरने लगा। ___ फागुन-बदी-तेरस स्थिरवार के दिन यगिरि से समाचार मिला, 'आचार्यजी मन्दिर प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए नहीं आ सकेंगे और भगवान् की आज्ञा के अनुसार उत्तर की यात्रा पर जाएँगे। वहाँ बन्धन में पड़े भगवान् को मुक्त करके ले आने का कार्य बहुत आवश्यक है। यों न आने पर कोई चिन्तित न हों, जिन वैदिकों को भेजा है, उनके द्वारा इस प्रतिष्ठा के उत्सव को सम्पन्न करा लें। इस सन्दर्भ में एक और बात की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है। भगवान् ने स्वप्न में दर्शन देकर बताया है कि वेलापुरी के उत्तर से एक और दक्षिण से एक-दो चर्मकार प्रतिष्ठित होनेवाले भगवान् चेन्नकेशव स्वामी की प्रतिष्ठा के समय पर भगवान के चलनेफिरने की सुविधा के लिए भगवान के एक-एक पैर के लिए पादत्राण ले आएँगे। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 443
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy