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________________ कैसे सम्भव हँ ?" " जब अपनी त्रुटि पता हो जाएगी, तब स्वयं अपने को सुधार लेंगे।" " तो अब उनकी स्थिति ऐसी हुई ?" " शंका जिस नींव पर हुई, वही ढीली डाली थी, ऐसा ही लगने लगा । इसलिए वह चित्त पटल पर से हट गयी-सी लगती है। उसके स्थान पर कार्य का दायित्व प्रधान हो चला है, अतएव उनका मन कार्य प्रवृत्त हुआ है।" "किस पर उनके मन में शंका उत्पन्न हुई ?" भी नूराधी एक लग सकेगा।" "यह बात जानने का प्रयास आचार्यजी के शिष्यों ने किया था, इसी कारण से वे वहाँ से खिसक गये थे, यह बात सुनने में आयी । " "हाँ, इसीलिए हममें कोई भी उनसे निजी बातों के बारे में पूछ-ताछ नहीं करते। तुम्हें भी ध्यान रखना होगा। कभी उनसे उनके निजी जीवन के बारे में जानने का प्रयास नहीं करना । " LA 14 'ऐसा है? अच्छा हुआ कि आपने चेता दिया । " इतने में घण्टी सुनाई पड़ी। चट्टला द्वार खोलकर बाहर आयी, देखा और अन्दर जाकर कहा, "मंचिअरसजी रानियों के साथ पधारे हैं।" "तो अब हमें क्या काम है। हम आराम करने जाएँगे।" बिट्टिदेव ने कहा । 'क्यों रानियों से मिलेंगे नहीं ? मंत्रिअरसजी से वहाँ की बातें जानने की इच्छा नहीं ?" "वहाँ कोई गड़बड़ी नहीं होगी, इसीलिए मंचिअरसजी आये हैं। आराम कर लेने के बाद मिलना अच्छा है न ? रानियों के बारे में या दण्डनाथजी के बारे में आप लोगों को चिन्त करने की आवश्यकता नहीं है। हम देख लेंगे।" कहकर विट्टिदेव द्वार की ओर बढ़ गये। शान्तलदेवी ने घण्टी बजायी। द्वार खुला, बिट्टिदेव चले गये । शान्तलदेवी और लक्ष्मीदेवी दोनों मन्दिर की ओर चल दीं। उदयादित्य, कुँवर बिट्टियण्णा पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे। " स्थपतिजी, हमारी रानीजी को शिल्प के विषय में बहुत श्रद्धा उत्पन्न हो गयी है जिन्हें आपने अभी नहीं दिखाया, उन चित्रों को दिखाइए और बताइए कि वे किस तरह बने । हम कुछ चलकर नगर वीक्षण कर आएँ। अभी से लोग आने लगे हैं। सारी सुविधाएँ हैं या नहीं; व्यवस्था ठीक हुई है या नहीं, सब देखकर आना है।" यह कहकर उदयादित्य और बिट्टियण्णा के साथ शान्तलदेवी चली गयीं। रानी लक्ष्मीदेवी स्थपति के साथ अकेली रह गयी। स्थपति ने विनीत होकर कहा, "मूल मन्दिर की रचना के सभी चित्रों का कल ही परिशीलन किया गया है। यदि आप चाहें तो एक बार निर्मित भवन को पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन : 435
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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