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"जब निर्णय किया था तो सोच-विचार कर ही किया था; कोई हठ की भावना नहीं थी। और फिर वह साधना का मार्ग है।"
"तो हम चलें!" "सन्निधान के रहने से कोई बाधा नहीं।" "रहकर करना क्या है?"
"बात करने के लिए बहुत से विषय हैं। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैयक्तिक, शास्त्र, कला, तस्व, धर्म-अनेक विषय हैं। चाहे जिस विषय को लेकर बातचीत कर सकते हैं। या सन्निधान अनुचित न मानें तो छोटी रानी के ही बारे में बता सकते हैं।"
"वह अभी कच्ची और अप्रबुद्ध है; कभी-कभी लगता है कि वह स्वभाव से ही निम्न स्तर की है। उन महादण्डनायकजी की बेटियों-जैसी...कनपटी लगे घोड़े जैसी। कभी-कभी यही लगता है कि हम इस विवाह के लिए सहमत न होते तो अच्छा होता।"
"बेचारी, छुटपन में वह जिस वातावरण में पनपी, उसके मन में वैसा ही कुछ जमा हुआ है। यहाँ के बदले हुए वातावरण, यहाँ की रीति-नीतियों के अनुसार अपने को गढ़ लेने में समय तो लगेगा ही। निधान को ही सहिष्णुता बरतनी चाहिए।"
__ "हम सह तो सकते हैं। परन्तु हमें ऐसा प्रतीत हुआ है कि वह बहुत ही शंकालु है। स्थपति को 'प्रतिमा भंगी' जो दी, उस समय के एकान्त के विषय में उसके मन में शंका उत्पन्न हो गयी है।" यह बताकर उन्होंने इस सम्बन्ध में जो बातचीत हुई थी उसको भी ज्यों-का-त्यों सुना दिया।
"इस तरह की शंका का उत्पन्न होना अच्छा नहीं। इसलिए मैं ही एक काम करूँगी। आज उसे मेरे पास भेज दीजिए ताकि वह मेरे साथ रहे।" शान्तलदेवी ने कहा।
"मैं ही भेजें या तुम स्वयं ही बुलवा लोगी?" "एक ही बात है। मैं ही बुलवा लेती हूँ। सन्निधान को अकेले रहना पड़ेगा
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न?"
"थोड़ी ही देर तक न? मैं तब तक बल्लाल और छोटे बिट्टि को बुलवाकर उनके शिक्षण, अभ्यास आदि के विषय में उनसे ही पूछ-ताछ कर लूँ। यों तो उन बच्चों से बातचीत करने का अवसर ही मुझे नहीं मिल रहा है।"
"सन्निधान का यह विचार अच्छा है। बच्चे भी कई बार यही कहा करते हैं। वे सन्निधान से सीधे बातचीत करने से डरते हैं। वास्तव में सन्निधान से अधिक सम्पर्क के लिए उन्हें अवसर नहीं मिला है। जबसे उन्हें कुछ समझने
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 419