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________________ "इसे इस तरह का अर्थ देने की आवश्यकता नहीं।" बिट्टिदेव ने कहा। "चोल राजकुमारी से विवाह करने जैसी कोई परिस्थिति पैदा हो गयी है?" "इस तरह की सलाह होती तो हम पहले ही अस्वीकार कर देते।" "क्यों? अगर वह राजनीतिक स्थिरता का मार्ग प्रशस्त करनेवाली हो तो क्यों अस्वीकार करेंगे?" शान्तलदेवी ने प्रश्न किया। "चोल वैष्णव-द्वेषी हैं।" "आचार्यजी ने ऐसा तो नहीं बताया था न?" "वे सबको समान रीति से देखनेवाले हैं। वास्तविक स्थिति का तो उनके शिष्यवर्ग से हमें पता चला है। इस कारण से उनका सम्बन्ध हमें सम्मत नहीं लगा।" "तो अब सम्भावित सम्बन्ध?11 "वह धर्म से माश्चित है।" "तो बात यह कि आचार्य की पन्थानुयायी भी एक रानी होनी चाहिए। यही न?" "हमने स्वयं नहीं चाहा। ऐसी एक सलाह हमारे पास आयी है।" "किससे? श्री आचार्यजी से?1 "उनसे सीधे यह सलाह नहीं आयी है। परन्तु इस सलाह के वे विरोधी नहीं। आण्डवन की ऐसी इच्छा हो तो उसे कौन रोक सकता है-वे यही कहते हैं।" "तो निर्णय कर लेना। हमारी राय की क्या आवश्यकता है?" "यों असन्तोष प्रकट करेंगी...?" बिट्टिदेव ने बात को अधूरा ही छोड़ दिया। "रानी बम्मलदेवी और राजलदेवी ने जब कहा कि सन्निधान ने जिस धर्म को स्वीकार किया, वहीं हमारा है। तब यह सलाह उचित है?" "मूलतः सभी विषयों को जाननेवाली जन्मतः वैष्णव एक रानी हो तो अच्छा है-यही यहाँ के लोगों की राय है।" "गंगराज क्या कहते हैं ?" "उनसे पूछना होगा?" "वे क्योंकि वृद्ध हैं। पोय्सल राज्य की प्रगति के लिए ही अपने जीवन को उन्होंने धरोहर बना रखा है।" 'हमारे बड़े भैया की क्या हालत हुई ? गंगराज की भानजियाँ ही रानियाँ बनी थींन?11 "सन्निधान का मन ऐसा क्यों हुआ? उनकी भानजियों ने जो भूल की उसके लिए गंगराज कैसे उत्तरदायी हैं। इस तलकाडु के युद्ध में विजय के लिए कारण कौन हैं?'' 350 :: पट्टमहादेव शान्तला : भाग तोन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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