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________________ तो मैं पाणिग्रहण हो नहीं करती। उनका प्रेम जब मेरे ही लिए सुरक्षित था उस समय की मुझे जानकारी है। वे अगर सिंहासनारूढ़ न हुए होते ये राजनीतिक दाँव-पेंच न होकर राज्य भर में शान्ति विराजती, राज्य के शत्रु न होते तो पता नहीं क्या होता। राजनीतिक सुविधाओं को दृष्टि से अनेक रानियों को बना लेने की सुविधा है। ऐसे विवाहों से सभी स्त्रियों को तृप्ति मिलेगी, यह कल्पना नहीं कर सकते । परन्तु यहाँ आप लोगों को वह सुख मिले यही मेरी इच्छा थी । आप लोगों का विवाह नैमित्तिक केवल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं होना चाहिए। उसे वैयक्तिक आशाओं को सफल बनाने का भी हेतु होना चाहिए - यही मेरी अभिलाषा रही। उस तरह आप लोगों का जीवन बने; इसके लिए मैंने हृदयपूर्वक प्रयत्न किया है। इस सम्बन्ध में मुझे किसी भी तरह की व्यथा नहीं है। केवल दैहिक सुख में ही सम्पूर्ण समय व्यतीत कर दें तो भगवान् की आराधना के लिए समय कहाँ मिल सकेगा ? अब मुझे वह सुविधा मिली है। आशय यह कि प्रकारान्तर से आपका विवाह मेरे लिए लाभकारक ही हुआ न?" ब 'आपके सोचने की रीति तक हमारी समझ नहीं पहुँच पाती।" बम्मलदेवी ने कहा। " अपने चारों ओर रहनेवालों के जीवन में प्रकाश भरना ही हमारी पट्टमहादेवीजी की रीति है। इसके लिए हमसे बढ़कर उदाहरण और चाहिए ?" अब तक मौन बैठी चट्टलदेवी ने कहा । " मन, बचन, तन-तीनों किसी कार्य के लिए सम्मति दें, तब की बात ही अलग है। बच्चन और मन की स्वीकृति न होने पर केवल काया के वशीभूत क्रिया के लिए व्यक्ति कारण नहीं बन सकता। तुम्हारे जीवन को समझने के लिए बहुत उदारता होनी चाहिए, चट्टला तुमने पहले अपने लिए हमारे मायण को चुना, वह हवा लगने पर भभक उठा तब भी वह खरा सोना है। उसकी बुद्धिमत्ता से और विवेकपूर्ण रीति से तुम्हारे जीवन को प्रकाश मिला। उसने तुम्हें बहुत बुरा माना था। किसी दूसरी स्त्री से विवाह कर लेने में उसे कौन-सी खाधा थी ? परन्तु जो भावना तुम्हारे बारे में बनी, वही और स्त्रियों के बारे में भी हुई, व्यापक बनी। उसके मन में व्याप्त यह भावना ही तुम्हारे लिए भाग्य बनी।" शान्तलदेवी ने विश्लेषण किया। मायण तुरन्त वहाँ से उठकर कुछ दूर जाकर अस्त होते हुए सूरज को देखते हुए खड़ा रहा। " 'मायण ! उठकर क्यों चले गये ?" बम्मलदेवी ने पूछा । 'उसका वैसा ही स्वभाव है। अपने अच्छे काम के बारे में अगर सुनता है तो उसे अच्छा नहीं लगता।" 338] :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन "
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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