SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में वह सहज हास्य की रीति नहीं लगी। शान्तलदेवी ने शयन के सम्बन्ध में जो निर्णय किया था उसे सुना देने की बात सोची। जिन्हें बताना चाहिए उन्हें तो बता दिया गया है। शेष लोगों से उसका क्या सम्बन्ध–यही सोचकर कहा, "तो रानीजी को अभी महासन्निधान की रीति का पता नहीं लगा होगा।" यों कहकर बात बदल दी। "अर्थात?" 'वे सीधा रानी बम्पलदेवी के हो शयनागार में आएँगे। अश्वारोहियों के जांच बड़े बलवान होंगे न?" "अब कुछ समय से एकान्त की इच्छा कर रहे हैं महासन्निधान। अब उनका मन पट्टमहादेवी को ओर लग गया होगा। इसलिए..." "तो उस एकान्त की इच्छा का कोई दूसरा कारण होना चाहिए। तुम्हारी कल्पना सही नहीं। मैं उन्हें अच्छी तरह समझती हूँ। तुम पर जब स्नेह हुआ तब कैसे बरता, सो तो तुमको पता है न? यदि मैं इस पर असूया करती तो जीवन में मुझे शान्ति कदाचित् मिल ही नहीं सकती थी।" "तो उनकी अभिलाषा कुछ और ही रही होगी, यही न?" "ऐसा नहीं। उनका स्वभाव ही इस तरह का है। कुछ चपलता कभी-कभी दिखा देते हैं। फिर बाद में वह ठीक नहीं समझकर, उसी से लगे न रहकर, उससे पार पाना चाहते हैं। मैंने एक निश्चय किया है। उसका कारण मैंने महामातश्री को जो वचन दिया है, वह है। उसके अनुसार मैं आजीवन शान्ति के साध्य असूया रहित रह सकती हूँ। विशेषकर पद्मलदेवीजी के जीवन को टूटता हुआ देख मैं कभी भी अपने जीवन में अशान्ति के लिए स्थान ही नहीं दूंगी। चारों ओर के लोगों की तृप्ति में मेरी शान्ति निहित है। इस बात को मैं अच्छी तरह समझती हूँ।" "आपने उन्हें जितना समझा है, उतना मैंने नहीं समझा है, यह सही है। क्योंकि आप दोनों बचपन से ही एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचित हैं।" "जानते हैं। परन्तु, केवल हम दोनों ही नहीं, रेविपण्या राजमहल के सभी को अच्छी तरह समझता है, यह कहना अधिक संगत है।" __ "तो उससे पूछने पर पता लग सकता है कि महासन्निधान एकान्त क्यों चाहते हैं। है न?" "परन्तु वह बताए तब न?" "आप पूछेगी तो वह आपसे कुछ भी नहीं छिपाएगा।" "वह एक विशेष ही व्यक्ति है। औचित्य-अनौचित्य का उसे पूर्ण ज्ञान है। यदि उसे यह लगे कि नहीं कहना तो वह किसी से भी कुछ नहीं कहेगा।" "तब तो उसपर आपके विश्वास का फल ही क्या है?" 334 :: पट्टमहादेवी शान्ताला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy