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________________ "कुछ नहीं। सेवक कहाँ गये? ये लोग दण्डनायक दम्पती को विश्राम के लिए क्यों नहीं ले गये?" उन्होंने घण्टी बजायी। दासी ने आकर प्रणाम किया। "दण्डनायकजी, राजकुमार और राजकुमारी के विश्राम की व्यवस्था अभी नहीं हुई?" "चेन्नये, रुद्रव्वे तभी चली गयी थी तैयार करने।" "जाकर तुरन्त देख आओ। यात्रा की थकावट का पता आराम से खा-पीकर रहनेवाली तुम लोगों को भला कैसे हो?" आज्ञा पाते ही सेविका भागी गयी। "हमारे राजमहल के सेवकों को दुबारा बताने की आवश्यकता नहीं होती। कदाचित् हम अपेक्षित समय से पहले ही आ पहुँचे हैं।" शान्तलदेवी ने कहा। चेन्नव्ये ने आकर प्रणाम किया। "सब तैयार है?" बम्मलदेवी ने पूछा। उसने इंगित से बता दिया तैयार "ठीक, इन्हें ले जाओ।" बिट्टियण्णा, हरियलदेवी और राजकुमारी वहां से चली गयीं। बाहर से द्वार बन्द हुआ। बम्मलदेवी अन्दर से साँकल चढ़ाकर शान्तलदेवी की बगल में आ बैठी। कुछ बोली नहीं। शान्तलदेवी ने सोचा कि इतने शीघ्र शेष लोगों को बाहर भेजने का सम्भवतः कोई कारण होगा। इस कारण से वह कुतूहल से यह प्रतीक्षा करने लगी कि देखें क्या कहती हैं ? लेकिन बम्मलदेवी मौन ही रही। आखिर शान्तलदेवी ने ही पूछा, "महासन्निधान यदुगिरि कब गये?" "वेलापुरी को खबर भेजने के एक-दो दिन बाद ही चले गये।" "तुम क्यों नहीं पी?" "महासन्निधान वहाँ युद्ध करने तो नहीं गये न?" "तो केवल युद्ध के समय में तुम्हारा साथ होगा?" "मेरा यह अभिप्राय नहीं।" "तो फिर युद्ध को बात क्यों उठी?" "अब तक ऐसे ही प्रसंग में मुझे बुलावा आया है।" "क्या वह रुचि का काम नहीं?" "मैंने यह नहीं कहा। पता नहीं, क्यों? महासन्निधान ने मुझे बुलाया नहीं। आचार्य के दर्शन की अभिलाषा मुझे नहीं क्या? मैंने समझा था कि कोई राजकीय कार्य होगा।" "समझा था, क्या अब नहीं है?" 332 :: पट्टमहादेत्री शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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