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________________ ''आएकी बातें सुनते समय तो मन को ठीक ही लगती हैं। सच है। परन्तु उस भिन्न-भिन्न तरह के नाद को उत्पन्न करना हो तो क्या करना चाहिए? सन्निधान की इच्छा है कि यह नादमूर्ति बने। कौन-कौन से नाद उसमें हों, यह पता होना चाहिए न? सन्निधान नादों को मुचना और आप पत्थर में उन दोनों को स्पन्दित करने की क्रिया का मार्गदर्शन करेंगे तो मैं प्रयत्न करूँगा।" चाचण ने कहा। स्थपति ने पट्टमहादेवी की ओर देखा। पट्टमहादेवी ने कहा, "सरस्वती साहित्य और संगीत की अधिदेवता है। या व्यापक अर्थ में बताएँ तो यह ज्ञान और कला की अधिदेवसा है। इसलिए वीणा रहित इस नाट्य-सरस्वती का सम्पूर्ण शरीर ही संगीत के आधारभूत सप्तस्वरों का आधार स्थान बने, यही मेलीच्या " "ठीक है। पट्टमहादेवीजी की इच्छा को कार्य रूप में परिणत करने का प्रयत्न करूंगा। कह नहीं सकता कि इसमें मुझे सफलता मिलेगी या नहीं। एकएक पत्थर में एक एक नाद भरना तो सम्भव है, परन्तु यहाँ एक ही पत्थर से सातों स्वर निकलें, इसे ही साधना है।" स्थपति ने कहा। "वीणा के एक तार से जब सातों स्वर निनादित हो सकते हैं तब पत्थर में भी निनादित होने चाहिए न?" शान्तलदेवी ने प्रश्न किया। "स्पन्दन के हिस्से की लम्बाई जैसे-जैसे कम होती जाएगी, वैसे-वैसे स्वरस्थान बढ़ता जाएगा, यह वीणा के तार का स्पन्दन सूत्र है।" "तार ही क्यों ? सब वैसा ही। हमारे कण्ठ की नाद-तन्त्रियौं हमारी जानकारी के बिना ही बड़ी-छोटी होती रहती हैं। स्वर स्थायी होकर निनादित होने में सहायक होते हैं। इसलिए पत्थर में भी उसे साधा जा सकता है। मुझे ऐसा लगता है। परन्तु पत्थर के बारे में आपका परिचय अधिक है, मेरा उस सम्बन्ध में कहना ठीक नहीं।" "प्रयत्न करूँगा ही।" "अच्छा एक और बात पूछनी है, इसलिए शिल्पीजी को बुलवाया।" इतना कहकर शान्तलदेवी क्षण भर के लिए मौन हो गयीं। चावुण और स्थपति-दोनों ने प्रतीक्षा की दृष्टि से उनकी ओर देखा। __ "शिल्पीजी, यह नाट्य-सरस्वती का चित्र आपकी ही कल्पना है या किसी व्यक्ति को मन में रखकर रूपित किया गया है?" शान्तलदेवी ने प्रश्न किया। चावुण कहना तो चाहता था, लेकिन कहा कुछ नहीं; उसने स्थपति की ओर दृष्टि डाली। "संकोच करने की आवश्यकता नहीं। कहिए शिल्पीजी। सन्निधान का 320 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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