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________________ आपने सोचा है, छत के नीचे एक ओर चुनने के योग्य नहीं हो सकेगा। इसलिए इसे कुछ विस्तृत रूप देकर मन्दिर के उत्तर की दीवार में लगाएँ तो कैसा हो?" "वह भी उचित है। उत्तर के द्वार को हम स्वर्गद्वार कहते हैं। ज्ञानाधिदेवता की कृपा न हो तो हमें सायुज्य कहाँ मिलेगा? बही करेंगे। परन्तु इससे मिलतीजुलती एक और मूर्ति को बनाकर द्वार के दूसरी ओर चुनना होगा।" स्थपत्ति की बात समाप्त होने को थी कि इतने में चावुण वहाँ आया। उसे पहले ही आभास हो गया था कि उसके चित्र पट्टमहादेवीजी की दृष्टि में पड़े होंगे। कुतूहलपूर्ण उत्साह से उसने आकर प्रणाम किया। शान्तलदेवी ने उसे बैठने को कहा। उसके बैठने के बाद कहा, "स्थपतिजी! अब तक जो बातचीत हुई उसे शिल्पीजी को बता दीजिए।" स्थपति ने ज्यों-की-त्यों सारी बातें बता दी। उसके लिए यह कल्पनातीत विषय था कि उसके उस चित्र के विषय में इतनी गम्भीर बातचीत भी हुई है। फिर भी उसने स्थपत्ति की बातें मौन होकर सुनी, कहा कुछ नहीं। न कोई प्रतिक्रिया ही व्यक्त की। स्थपत्ति ने कुछ देर तक प्रतीक्षा करने के बाद पता "हमाल राग के अनुसा यह नाट्य सरस्वती है न?" "क्या मुझे उत्तर देना होगा? कृति-निर्णय में आप और सन्निधान परिणतमति हैं। सन्निधान की सूचना के अनुसार इसे विस्तृत रूप देकर, एक प्रभावाली, छत्री को बनाकर दोबार में लगाया जाए तो ठीक रहेगा।" "तो क्या एक दूसरा चित्र बनाएंगे?" स्थपति ने पूछा। "अब तो बनाना ही होगा न?" चाबुण ने कहा। "सन्निधान की इच्छा है कि वह नाद का भी प्रतीक बने।" स्थपति ने कहा। "वह योग्य है। मगर उसे पत्थर में कैसे भरें- यह मैं नहीं जानता। आप या सन्निधान बताने की कृपा करें।" "नाद की उत्पत्ति कैसे होती है, 'शिल्पीजी ?" "स्पन्दन से।' "इस मूर्ति को बनाने के लिए स्पन्दित होनेवाले पत्थर का उपयोग करेंगे।" "पत्थर स्पन्दित होता है ?" "जहाँ गति, लय हो वहाँ स्पन्दन होना ही चाहिए।" "पत्थर जड़-वस्तु है। उसमें लय और गति कैसे सम्भव है?" बिट्टियण्णा ने, जो अब तक मौन रहा, पूछा। "वह केवल जड़-वस्तु ही होता तो उसमें सौन्दर्य को देखना सम्भव नहीं हो सकता था। जड़ में चेतना को भरे बिना उसमें सौन्दर्य को देखा ही नहीं जा 318 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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