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________________ न कुमार बल्लाल, चिक्कबिट्टि और विनयादित्य की तरह यह भी तो बेटा ही था न "मुझे पता हैं. यह भी खुर के निवारण के ही लिए किया जानेवाला काम है।" बिट्टियष्णा बोला । 44 "इसका मतलब ?" 'मतलब... मतलब.. तब मुझे लाल-लाल आँखें क्यों दिखायी गयी थीं?" + 'कब ?" " "उस स्थपति के सामने जब कहा कि सन्निधान ही भंगिमा दे सकती हैं।' " 'अब ऐसा किया जा सकता है ? बिट्टि। वह उचित होगा ?" 14 अन्दर अन्दर अभिलाषा है। अभिव्यक्ति के लिए स्थान पद आदि का बन्धन है। इसलिए यह मार्ग उस अन्तरंग की अभिलाषा को पूरा करने का ही यह ढंग है न ?" 41 शान्तलदेवी मौन हो रहीं। 'ऐसा है ? बिट्टिगा ने जो कहा वह ठीक है। अपने अन्तरंग की इच्छा को रानी होकर मैंने ऐसे पूरा किया? न, स्थपति ने मेरी मदद माँगी, कल उन्हें क्या कहना चाहिए- इसे निश्चय करने के विचार से मैं नृत्य - भगिमाओं का स्वयं परीक्षण कर लेने के लिए ही ऐसा कर रही हूँ। इतना ही । परन्तु अन्य कार्यों की ओर ध्यान न देकर इसी पर मेरा विशेष ध्यान क्यों ? उसके कथन का भी कुछ तो अर्थ है ही। ऐसा अर्थ करने के लिए हेतु भी तो है।' यों वह सोचने लगीं। "माँ, आपने जिन भाव-भंगिमाओं की कल्पना की हैं, वे बहुत ही सुन्दर हैं। स्थपति को कल राजमहल में बुलवा दूँगा। आप भंगिमा दर्शायें। वे चित्रित कर लें।" बिट्टिया ने कहा । " इस पर अभी सोचना होगा। फिलहाल तो मैंने एक निर्णय किया है। कल सभी शिल्पियों को बुलवाकर, स्थपति की यह सलाह बहुत ठीक है, इसलिए आप लोग भी अपनी कल्पना के चित्रों को तैयार कर लावें। पहले सभी चित्रों से चुनाव करेंगे' यही कहना चाहती हूँ।" " स्थपति को स्वीकार है ?" "सो भी ठीक हैं। पहले उन्हें बुलाकर सूचित करेंगे। उनकी राय जानकर आगे का निर्णय करेंगे। यही ठीक है, आज इतनी जल्दी मन्त्रणागार से क्यों चले आये ?" " महासन्निधान तलकाडु में वहाँ की देखभाल के लिए माचण दण्डनाथ को नियुक्त कर स्वयं शीघ्र ही इस ओर आ जाएँगे, यह समाचार मिला है। यही सुनाने के लिए आया ।" बिट्टियण्णा ने कहा । "ऐसी शुभ सूचना सुनाने में इतना विलम्ब क्यों किया ?" 306 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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