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________________ विजयोत्सव में भाग लेने के बाद बिट्टिदेव का स्वास्थ्य कुछ बिगड़-सा गया। जगदल सोमनाथ पण्डित ने सब तरह से जाँच की और-"घबड़ाने का कोई कारण नहीं। थकावट के कारण थोड़ा बुखार आ गया है। एक-दो दिन में ही उतर जाएगा। कमसे-कम एक पखवारे तक विश्रान्ति, औषध-सेवन तथा परहेजगी अरतेंगे तो पहले जैसे ही स्वस्थ हो जाएंगे।"-यों पट्टमहादेवी को सब बातें सूचित कर दी। इसी बीच खबर मिली कि नीलाद्रि (नीलगिरि) की तरफ से कुछ गड़बड़ी हो सकने की सम्भावना है। पुनीसमय्या ने पहले ही बताया था कि सेना को उस ओर भेजना ठीक होगा। कोंगाल्वों के साथ के गत युद्ध में जीत जाने पर भी, काफी नुकसान उठाना पड़ा था, इसलिए अभी तुरन्त सैनिकों को युद्ध में लगाना उचित न मानकर फिलहाल स्थगन का निर्णय किया गया था। लेकिन अब तो लाचारी थी। पुनीसमय्या के नेतृत्व में पोय्सल-सेना नीलाद्रि की ओर चल पड़ी। प्रकृत सन्दर्भ में अश्वदल का साथ जाना भी उचित समझकर यह निर्णय किया गया था कि मंचि दण्डनाथ और सवारनायक अनन्तपाल दोनों अपने-अपने अश्वगुल्मों के साथ पुनीसमय्या के साथ चलेंगे। - यह खबर बिट्टियण्णा के लिए अमृत-सी लगी। उसमें एक नयाँ स्फूर्ति जाग उठी। अपना उत्साह न रोक सकने के कारण वह सीधा शान्तलदेवी के पास पहुँचा। प्रार्थना करते हुए बोला, "मैं युद्ध में जाऊँगा। भगवान ने ही मेरी इच्छा के अनुसार युद्ध का मौका ला दिया है। आपने अपने अमृत हस्त से यह तलवार दी है। इस तलवार के लिए इतनी जल्दी युद्ध में जाने का जो अवसर मिला है वह सिद्धि का शुभ-संकेत है। कृपा कर सन्निधान को सूचित करें और मुझे युद्ध में जाने की अनुमति दिलवा दें।" "तुम अभी तेरह साल के बच्चे हो, युद्धरंग में भेजने के लिए कौन देगा अभी अनुमति?" करुणा से भरकर शान्तलदेवी ने उत्तर दिया । पट्टपाहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 5
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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