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________________ "और अच्छा रहता है। यह भोजम शरीर को गरम रखता है। शक्ति देता "इसीलिए अत्यन्त शक्तिशाली दिखाई दे रहे हैं।'' "युद्ध, शिविर की मिठाई-चुरमुरी नहीं। क्या समझती हो?" "मुझे तो यह शब्द सुनते ही कंपकंपी आ जाती है। आप सब लोगों को यह क्या पागलपन सवार हुआ है ? बेचारे आप लोग क्या करेंगे? हम नर माह-माम शरीर में गरमी और ताकत भरती जाय तो ऐसा ही होता है। यों ही बिना कारण युद्ध छेड़ना।" "हमने कहाँ छेड़ा। यह सब तो उस डींग हाँकनेवाले के कारण।" "डींग हाँकनेवाले?" "वही, 'मैं एक राजा' राजवंशीय कहकर डींग मार रहा है न, वह; वहीं पोयसल बिट्टिगा।" "पोय्सल बिट्टिगा-दही उस मुडुकुतोरे के पास जिसने सेना लाकर रखी है ? अब समझी। उसे आप लोगों से वैर क्यों?" "वैर क्या है, घमण्ड है। राज्य का लोभ। उसकी आयु अब समाप्त हुई समझो, इसलिए वह इधर आया है।" "नहीं जी, आप ऐसा कहते हैं कि मानो वह कोई खटमल है, रौंदने से मर जाएगा। ओह ! ओह !। उनकी उस सेना को याद करते ही...शरीर काँप जाता है।" "तुम जैसी डरपोक औरतों के लिए यह सब होता है। हमारी सेना..." "कुछ दिखती ही नहीं।" । "वह कितनी और कहाँ है—यही तो रहस्य है। इसी रहस्य को जानने के लिए गुप्तचरों को भेजा है। उनमें से अब तक दो तो गये काम से।" "ऐसा? उन्होंने क्या किया?" "वह सब तुम क्यों पूछती हो? उस सबका पता लगाने के लिए अलग बहुत बड़ी व्यवस्था है, हमारे राज्य में। शत्रुओं का कोई गुप्तचर मिल जाय तो उसे वहीं तब-का-तब समाप्त कर देने की आज्ञा है, कुलोत्तुंग प्रभु की। उन दोनों को चीरकर किले के दरवाजे पर बन्दनवार की तरह बाँध रखा है।" "हाय! हाय!! उनकी पत्नी-बच्चों का क्या हाल होगा?" "पत्नी-बच्चों को ममता लेकर कहीं लड़ाई लड़ी जाती है?" "यह अन्याय है जी।'' "यह सब सोच-विचार करने के लिए समय हो कहाँ होता है? सोच-विचार करने का वहाँ स्थान ही नहीं है। उस समय जो भी हो जाय वही ठीक है।" 'यही ठीक है शायद।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तोन :: 289
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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