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________________ डाँटकर बताइए, महाराज। मेरा पति एक तरह से हठी है न ? मुझे अपने तई स्वतन्त्र छोड़ देने को कहती हूँ तो ये मानता नहीं, कुछ व्रत नेम रखने की बात करते रहते हैं । सब मेरे पीछे लगे रहते हैं। क्या करूँ ? बताइए। पूर्वजन्म का ही यह फल हैं, ऐसे के साथ मेरा गठबन्धन हो गया। न जाने कहाँ से यह दुष्ट मेरे पल्ले पड़ गया है" चट्टला आग ठगलती-सी बोली । "री, री ! तूने क्या समझ लिया कि दूसरों के सामने मार नहीं पड़ेगी ? अपनी निर्लज्ज जोभ को संभाल ! महाराज इसकी बात पर विश्वास न कीजिए। यह नीच स्त्री है। इसीलिए सदा इस पर मेरी आँख है। हमेशा सतर्कता रखता हूँ।" मायण बोला। " 'अरे गोज्ञ्जिगा! इसे साथ ले चलो और उस धर्मशाला में जो इनका लतूपटा पड़ा है उसको जाँच इसको वापस कर दो। अरे जाओ, इसके साथ।" दामोदर बोला । लड़ा। י " इसे भी मेरे साथ भेजने की कृपा करें।" मायण गिड़गिड़ाया। "यहाँ, जो कहते हैं, उसके अनुसार चलना होगा। हाँ चलो!" दामोदर ने "महाराज! मैंने कहा न कि यह बड़ा मनहूस है। यह जब तक दूर रहे कम-से-कम तब तक शान्ति रहती हैं। बहुत उपकार किया आपने इस दुष्ट को तलकाडु से ही बाहर कर दें तो मुझे और अधिक शान्ति मिलेगी। आपको ज्ञात नहीं महाराज चूँकि इससे यह मंगलसूत्र गले में बँधवाया, इसीलिए इसे सह लेती हूँ। यह रीछ जैसा है। क्या करूँ ? भगवान् एक बच्चा दे दें तो कम-सेकम उसको देखकर दिन बिता लूँ। मेरा दुर्भाग्य है, बच्चा भी नहीं।" कहती हुई पल्लू से मुँह हाँककर रोती हुई-सी मायण को उँगली से संकेत किया। " 'अरे गोज्जिगा! इसे जैसा है, वैसे ही नदी के पार रवाना कर दे। बेचारी, ऐसी अच्छी स्त्री को कितना सता रहा है, यह गँवार !" दामोदर ने कहा । "चल रे !" गोजिया ने कहा । "अजी, महाराज! आपके पैरों पड़ेगा। मुझे अपनी पत्नी से दूर मत करें। इससे दूर रहने से यही अच्छा है कि नदी में डूबकर मर जाऊँ। मुझे भरने से डर लगता है। इसलिए महाराज, दया कीजिए।" मायण ने गिड़गिड़ाकर कहा । " अरे गोज्जिगा! देर क्यों ?" दामोदर गरज उठा। उसने मामण को एक बार घसीटने की कोशिश की। "अरी, यह क्या ? यह तुमको अच्छा लग रहा है? बच्चों की आशा लेकर यात्रा के लिए मुझे भी साथ ले आयी, अब जब यह कह रहे हैं कि नदी पार करा देंगे तो चूँ तक नहीं करती ? समझ गया। बड़े-बूढ़े लोग कहा करते थे, अब उनकी बात याद आती पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 285
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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