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________________ उन्होंने जो काम किये और अकारण ही दूसरों पर उन्होंने जो शंका की उसका स्मरण होने पर जीवन से ही हाथ धो लेने की इच्छा होती है। फिर भी एक कहावत प्रचलित है कि "प्रत्यक्ष देखने पर भी प्रमाणित कर लें।" कहकर दण्डनायिका चामब्वे की सारी करतूतों को जितना देखा और अनुभव किया उसे हू-ब-हू विस्तार के साथ कह सुनाया। अपने सुन्दर जीवन को भयंकर बना लिया स्वयं अपने ही कृत्यों से, और परलोक सिधार गयी इसी शंका के कारण। इसीलिए वृद्धों ने कहा है-'संशयात्मा विनश्यति।' " और बात समाप्त की। "इसीलिए कदाचित् भगवान् बुद्ध ने कहा-आशा बुरी चीज है।" "हाँ, जिसे भगवान् बुद्ध ने आशा कहा, वह लालच है। आशा न हो तो पानव का विकास ही नहीं होगा, निराशावादियों से अच्छे समाज की सृष्टि नहीं होगी। दुनिया में निराशा और शंका-इन दोनों ने मानव के जीवन को कीचड़-भरा कूप बना दिया है। महासन्निधान के अग्रज की पट्टमहादेवीजी कौन हैं, यह आप जानते ही हैं। उन्होंने अपनी सहजात नइनों पर, मेरे ऊपर भी सन्देह किया. उनके तथा अपने, सबके जीवन को एवं अपने पतिदेव के भी जीवन को असहनीय बना दिया। सबकुछ समाप्त होने के बाद पश्चात्ताप करने लगी। इसे फिर कभी बताऊँगी। मानव होकर जन्मने के बाद इस भौति सांसारिक विषयों में लगे रहकर भी अपने जीवन को सुन्दर बना लेना चाहिए। वही वास्तव में साधक है।'' शान्तलदेवी ने कहा। कुँवर बिट्टियण्णा दण्डनायक बोप्पदेव के साथ विचार-विनिमय करके लौटा। महल के मुखमण्डप में शिल्पी और पट्टमहादेवी को बैठे देख आश्चर्यचकित हुआ। बिट्टियण्णा को देख शान्तलदेवी ने पूछा, "सब काम पूरा हो गया?" तुरन्त उत्तर न देकर बिट्टियण्णा ने शिल्पी की ओर देखा, फिर शान्तलदेवी की ओर। "देखो, स्थपतिजी ने आज दोपहर को ठीक से भोजन नहीं किया है। इसलिए तुम्हारे साथ अब उनके भोजन की भी व्यवस्था की गयी है। उन्हें ठीक से संभाल लेना। पहले आप लोगों का भोजन हो जाय। इन्हें अपने आवास पर भेजकर शेष बात बाद में। मैं प्रतीक्षा करूंगी।" शान्सलदेवी उठीं 1 शिल्पी भी उठ गया। शान्तलदेवी "नि:संकोच भोजन करना," कहकर चली गयीं। __भोजन के बाद शिल्पी अपने आवास पर लौटा। ठीक भोजन न करने की छोटी-सी बात को मंत्रणा को राजमहल में क्यों बताना चाहिए था? इससे शिल्पी को कुछ असन्तोष हुआ था। अङ्के पर पहुंचने के बाद उसे समझा देने की बात भी सोची। दण्डनायिका की और चट्टला की कहानी मन में जम गयी थी तो उसे यह बात स्मरण ही न रही। बड़ों का छोटापन और छोटों का बड़प्पन-दोनों के स्वरूप का परिचय अच्छी तरह होने के साथ बड़ों का बड़प्पन और छोटों का छुटपन भी उसे ज्ञात हुआ। 280 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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