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________________ उस समय राजमहल के महाद्वार के अन्दर प्रवेश कर रहे थे। रेविमय्या भी वहाँ उपस्थित था। उसने उस शिल्पी को इंगित से समझा दिया कि पहले इन सबको अन्दर जाने दें। शिल्पी इंगित समझकर महाद्वार के बाहर के चित्र-शिल्प को देखने के बहाने इधर-उधर चित्रों को देखता रह गया। तब तक सभी शिल्पी राजमहल में अन्दर प्रवेश कर गये थे। रेविमय्या ने उस शिल्पी के पास आकर कहा, "आइए।" दोनों महाद्वार के अन्दर गये। रेविमय्या आगे था। शिल्पी पीछे धीरे-धीरे चल रहा था । स्थपति हरीश शीघ्रता से आया और रेविमय्या से पहचानते हुए पूछा, "यह कौन है?" "एक शिल्पी हैं।" कहकर रेविमय्या ने आगे कदम बढ़ाया। ''मैंने इन्हें कभी देखा हो, ऐसा याद नहीं आता।" हरीश ने कहा। "देखा हो, तो याद हो आता।" "क्या पट्टमहादेवी से मिलना चाहते हैं ?" "हाँ।" "तुम कहाँ से आ रहे हो?" स्थपति हरीश ने उस शिल्पी से पूछा। "अभी योलापुरी से ही शिल्पी । "मैंने पूछा कि तुम्हारा गाँव कौन-सा है?" हरीश ने फिर प्रश्न किया। "वही, जहाँ मैं रहता हूँ।' शिल्पी ने कहा। हरीश को कुछ अटपटा-सा लगा। उसने सोचा कि "मैं छोटा हूँ, इसलिए यह डींग हाँक रहा है।" अगर उसे मालूम हो जाय कि मैं कौन हूँ तो यह ठीक से बात करेगा—यों सोचकर उसने कहा, "मैं यहाँ बन रहे इस मन्दिर का स्थपति "बड़ी प्रसन्नता की बात है।" कहकर वह शिल्पी चुप हो रहा।। "तुमने किस-किसके पास काम किया है ?" स्थपति हरीश ने प्रश्न किया। "चाहे किसी के पास काम करूँ, मैं अपना काम ही तो करता हूँ।" "अमुक जगह काम किया है-यह बताते तो यहाँ भी कुछ कार्य दिया जा सकता था।" हरीश बोला। "मेरा कथन ही योग्यता का मापदण्ड है या मेरा कार्य मेरो योग्यता का मापदण्ड है?" "इसीलिए तो पूछा-कहाँ-किसके पास काम किया है। हरीश ने कहा। "उस सबको आपने देखा हो, तब न? दोगद्दवल्ली हो आये हैं क्या?" "नहीं, सुना कि वहाँ अभी हाल में काम समाप्त हुआ है।" "कभी क्रीडापुर गये?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 247
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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