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________________ उन्होंने कितनी दूर की सोची है।" बिट्टियण्णा कुछ बोले बिना वहाँ से उठकर चला गया। इयोड़ी पार करने तक सुब्वला वहीं रहकर फिर बाहर आयी और देखा कि पतिदेव किस ओर गये। वह आगे के बरामदे की ओर जा रहा था। वहीं ठहरकर सुख्खला ने शान्ति की मुद्रा बना ली। बिट्टियपणा को आते देखकर शान्तलदेवी ने अपने पास बुलाया और अगल के आसन पर बैठने को कहा। वह आदेशानुसार बैठ गया। दासोज ने कहा, "अद्भुत है! सम्पूर्ण मन्दिर की कल्पना को बड़े सुन्दर दंग से चित्रित किया है इस महाशिल्पी ने। भित्तियों के बाहर और भीतर की रूपरेखा कैसी हो, इसका बहुत ही उत्तम चित्रण है। देवमन्दिर मन को प्रकाश देनेवाला स्थान है। वहाँ अंधेरा नहीं रहना चाहिए। प्रकाश के लिए उन्होंने वातायनों का संयोजन भित्तियों में जो किया है, उससे इस सुन्दरता में चाँद लग गये हैं। इससे वायु-प्रकाश का भी प्रबन्ध हो जाएगा। यह चबूतरा, यह बहुकोण नक्षत्राकृति, सब कलामय मात्र ही नहीं, हमारो सम्पूर्ण परम्परा की कथा इसमें समायी हुई है। इसे तैयार करने के लिए उस शिल्पी ने कितने महीने लिये होंगे? वे कहाँ के हैं?" "यह सब कुछ तो पता नहीं। इस सबको उन्होंने दो दिनों में निरूपित किया है, इतना भर ज्ञात है।' "बड़ा आश्चर्य है! वह हस्तकौशल कितना सधा हुआ है! रेखा खींची तो फिर बदली ही नहीं। महान् साधक से ही ऐसा सम्भव हो सकता है। इन वातायनों को सजाने की रीति देखने पर हमारे दासोजजी के बलिपुर के ओंकारेश्वर के मन्दिर में सजाये वातायनों की याद आ जाती है। इस शिल्पी पर इनका प्रभाव पड़ा होगा।' गंगाचारी ने कहा। "मैंने किसी और की कृति को देखकर अपनी कृति का निर्माण तो किया नहीं न! इसी तरह उन्होंने भी किया होगा। उनकी कल्पनाशक्ति महान् है। ऐसी दशा में यह कल्पना भी स्वयं की ही हो सकती है। उन्होंने जब मलिपुर को देखा ही नहीं तो वहाँ के ओंकारेश्वर मन्दिर के वातायनों का प्रभाव उन पर हुआ, कैसे कह सकते हैं? आपने जिस दिन उसे देखा, प्रसन्नता से नाच उठे थे। अपनी रुचि जतायो। मेरी पीठ ठोंकी; मुझे प्रोत्साहित भी किया और कहा--' आपके ऐसी कृति के निर्माण से बलिपुर के शिल्पियों की कीर्ति अमर हो जाएगी। इस सबका कारण आपका मनोवैशाल्य है। अब भी वहीं पुराना प्रेम आपमें है।" कहकर पट्टमहादेवी की ओर मुड़कर दासोज ने पूछा, "अब पट्टमहादेवीजी की इच्छा क्या करने की है?" "सन्निधान ने सामान्य दृष्टिपात ही किया था। फिर भी उनको भा गया। 240 :: पमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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