SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कारण भी अलग होता है। यहाँ परिस्थिति अलग है। और पेचीदा भी है। तुम्हारी बातें सुनने के बाद समस्या का स्थूल रूप यों है-महामातृश्री नहीं चाहती कि सन्निधान दूसरा विवाह करें। इस तरह के विवाह से अम्माजी दुःखी हो सकती हैं। सौतों के मात्सर्य के कारण इस राजमहल में एक बृहत् घटना हो चुकी है। ऐसा फिर न हो-याह उनका मन्तव्य है। अम्माजी संयमी है। वह स्थिर विचार रखने वाली है। राष्ट्रहित की दृष्टि से विवाह अच्छा और योग्य माना जाय तो वह परिस्थितियों से समझौता कर लेगी। महाराज से विवाह करने के लिए कोई श्री मा मद कही है, इससे बोई जारस : 'रन्तु सन्निधान का मन पल्लव राजकुमारी पर लगा है. यह फिलहाल सोच-समझकर विचार करने का विषय है। महाराज और पट्टमहादेवी के अपूर्व दाम्पत्य के समस्त विचारों से मंचि दण्डनाथ अच्छी तरह परिचित हैं। वे जानते हैं कि ऐसा दाम्पत्य बिरले ही देखने को मिलेगा। उन्हें यह राज्य-आश्रय दिया, यह उनके जीवन की एक महान घटना है। इसके बदले वे कोई अड़चन पैदा करेंगे-ऐसा तो मैं नहीं समझता। इसलिए पहले उनसे बातचीत करेंगे तब फिर सोचेंगे, यही उत्तम है।" हेग्गड़े ने विस्तार से कह सुनाया। "आपने कभी एक बार ऊँट की कहानी बतायी थी न! सर्दी से बचने के लिए सिर छिपाने की बात कहकर थोड़ी-सी जगह माँगने के बाद आखिर को अन्दर रहने वालों को भी भगा दिया। कहीं ऐसा ही न हो जाय-यही डर है!" माथिकब्बे ने "अब सब कुछ सन्निधान पर अवलम्बित है।" "तो सन्निधान पर अम्माजी का प्रेम..." हेग्गड़ती की इस बात को रोककर हेगडेजी ने कहा, "यह प्रेम से सम्बन्धित विषय नहीं, यह दूसरे ही ढंग का है। उस चौखट के घेरे में विचार करना ठीक न होगा।" "चाहे किसी ढंग का हो। इसका असर तो अम्माजी पर ही होगा न?" "वह प्राज्ञ है। उसे भी मालूम है कि क्या सही और क्या गलत है। अपने ऊपर बुरा परिणाम पड़ सके, ऐसी किसी भी बात के लिए वह मौका नहीं देगी। मेरा मन यही कहता है।" "दु:ख-दरद को सहकर संयम से वह रह सकती है। परन्तु वह वास्तविक जीवन होगा? जो भी हो, सन्निधान दूसरा विवाह न करें-यही अच्छा है। महामातृश्री को भी इससे सन्तोष होगा।" "यों ही ऐसे विचार चल पड़े हों तब?" "कुछ न होता तो महामातृश्री क्यों कहती ? निश्चित रूप से कुछ बात तो पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 23
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy