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________________ दोनों ठीक हैं। दोनों एक हो समय में घटित हैं। वह एक ही परात्पर शक्ति, अलग-अलग स्थानों में, अलग अा अविसयों को अलः।- अलग रूपों में सहायक बनी है। यहाँ प्रमुख विषय है निर्मल अन्तःकरण की प्रार्थना और मनीती। भगवान् सर्वान्तर्यामी है। वह इसी रूप में है, कहकर उस सर्वान्तर्यामी को एक रूप के दायरे में बाँधे क्यों? श्रीश्री के विश्वास के अनुरूप फल उन्हें मिला, हमारे तेजम के विश्वास के अनुरूप फल उसे मिला। राजकुमारी को विष्णु-बाहुबली इन दोनों का आशीर्वाद एक साथ मिला। वह अच्छी हो गयी। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा, रेविमय्या ने नग्न निर्वाण बाहुबली को किरीट, कुण्डल, माला धारण करवाकर चीनाम्बर, पीताम्बर से अलंकृत करवाकर गदा-पद्म, चक्रधारी के रूप में उनका दर्शन पाया है; ऐसे जिनेश्वर विष्णु से हमारे दाम्पत्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया है। हमारे रेविमय्या के हो अनुभव को उसी से पूछकर सुनिए; बहुत अच्छे ढंग से सभी बता देगा।" शान्तलदेवी ने कहा। आचार्यजी चकित होकर सुन रहे थे। रेविमय्या की ओर मुड़कर, "क्या प्रसंग है रेविमय्या?" आचार्यजी ने पूछा। उसने उस सारे पुराने वृत्तान्त को बताया। उसने काफी समय लिया। सब चुपचाप सुनते रहे। सब बता चुकने के बाद रेबिमय्या ने कहा, "सन्निधान और पट्टमहादेवी जैसे हैं वैसे ही रहें, यही मेरी इच्छा है।" "मुझे यह सबकुछ मालूम नहीं था।" उदयादित्य ने कहा। "अद्भुत है!" आचार्य का उद्गार था। "क्या?" शान्तलदेवी ने पूछा। "यहाँ आकर हम जो काम करना चाहते थे उसके लिए भगवान् विष्णु पूर्व तैयारी कर चुके हैं तो हमारे लिए उनकी सेवा करने के सिवा, दूसरा कोई काम नहीं बच रहा। हमसे भी पहले स्वयं भगवान् ने आकर, यहाँ अपना कार्य जिससे कराना है, उसे खोज निकाला है और बाद को हमें इधर आने की प्रेरणा दी है। हमें अब किसी भी बात की चिन्ता नहीं। जो मतान्तर चाहते हैं वे मतान्तरित हों। किसी पर जोर-जबरदस्ती या दबाव नहीं। प्रेरित करने और न करनेवाला भगवान् है। उनकी प्रेरणा के अनुसार हम यहाँ अपना कार्य करेंगे। महाराज और पट्टमहादेवी चाहे जो भी निर्णय कर लें सो ठीक है। क्योंकि वह अन्त:प्रेरणा और आत्मशक्ति का प्रतीक है, इसलिए वह मान्य हैं। क्योंकि आत्मशक्ति का प्रतीकात्मक व्यवहार निर्भय होता है और वह निश्चित कदम रखता है। वह प्रगति का सूचक है। भगवान् विष्णु जिस-जिससे जो सेवा जिस-जिस रूप में लेना चाहते हैं, वह यही जानें उनका काम जाने।" "धर्म के विषय में पत्नी, पति की अनुवर्तिनी न होने पर भी कोई बाधा पट्टमहादेवी शान्तना : भाग सोन :: १२
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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